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बढ़ती उम्र के कारण जोड़ों में टूट-फूट या उनका घिस जाना
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असंतुलित वात दोष के साथ विषाक्त पदार्थों (अमा) का बढ़ना
जोड़ों की समस्याओं के प्रकार:
रूमेटॉइड अर्थराइटिस:
इस प्रकार का गठिया आमतौर पर प्रतिरक्षा तंत्र में विकार के कारण होता है। इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम), जो कि बाहरी बैक्टीरिया और अवांछित पदार्थों से लड़ने के लिए जिम्मेदार होती है, हमारे ही जोड़ों पर हमला कर देती है। इस प्रकार का गठिया आमतौर पर मध्यम (प्रौढ़) आयु वर्ग के लोगों को होता है, लेकिन जीवा आयुर्वेद में उपचार करवा रहे अधिकतर रोगियों की उम्र 25-30 साल हैं। इससे पता चलता है कि युवा वर्ग को भी यह रोग हो सकता है। किशोर वर्ग के वह लोग, जिनके जोड़ों में कभी-न-कभी चोट लग चुकी है, भी रूमेटॉइड गठिया रोग से पीड़ित हो सकते हैं।
ऑस्टिओआर्थरिटिस:
ऑस्टिओआर्थरिटिस जोड़ों की उपास्थि कमजोर होने से होता है। यह समस्या प्रौढ़ और वृद्ध आयु वर्गों के लोगों को होती है। उचित देखभाल और आयुर्वेदिक उपचार से दर्द और परेशानी को कम करके इस प्रकार के गठिया को बढ़ने से रोका जा सकता है।
गठिया:
वात रक्त या गाउट शरीर में यूरिक एसिड के बढ़ने से होता है। तेज दर्द होना इसका मुख्य लक्षण है। खट्टे, नमकीन, तीखे या कड़वे खाद्य पदार्थों का ज्यादा मात्रा में सेवन 'रक्त धातु' को अशुद्ध कर देता है। इसके इलाज में उचित आहार, दवाईयाँ और पंचकर्म चिकित्सायें, जैसे अभ्यंग (आयुर्वेदिक मालिश), पिज्हिचिल और विरेचन आदि बहुत कारगर है। आप आज ही 0129-4040404 पर कॉल करके पंचकर्मा चिकित्सा के लिए अपना पंजीकरण करा सकते हैं।
जोड़ों में सूजन:
यह चोट लगने या अत्यधिक शारीरिक गतिविधि के कारण हो सकता है। इसकी वजह से जोड़ों के ऊतकों में एक तरल पदार्थ जमा होने लगता है।
पेजेट का रोग:
बूढ़े लोगों में पाया जाने वाला यह रोग खोपड़ी, रीढ़ और श्रोणि (पेड़ू) क्षेत्र में दर्द का कारण बन सकता है। यह अस्थि ऊतकों में अवांछित परिवर्तन के कारण होता है और धीरे-धीरे दीर्घकालिक बीमारी बन जाता है। यह महिलाओं में स्तन कैंसर की सम्भावना भी बढ़ाता है।
जीवा आयुर्वेद इन सभी प्रकार के जोड़ों के रोगों के लिए उचित उपचार प्रदान करता है। यह गठिया रोग सही समय पर उपचार नहीं कराने पर दीर्घकालिक विकलांगता बन सकती हैं। उचित निदान और उपचार हेतु आज ही जीवा के डॉक्टरों के साथ परामर्श के लिए अपॉइंटमेंट लें।