आयुर्वेदिक दवा असल में 80 अलग-अलग हर्बल शराब का प्रयोग करती हैं वो भी कुछ खास परिस्थितियों या बीमारियों में। लेकिन यह बहुत कम मात्रा में इस्तेमाल की जाती है, हर दिन खाने के बाद एक या दो चम्मच का ही सेवन किया जाता है।
हम पहले से जानते हैं कि एल्कोहल कई बीमारियां और तनाव का कारण हैं। लेकिन शायद आप चार बिंदुओं से इसके बारे में समझ सकते हैं। इंसान स्वाभाविक रूप से अधिक मात्रा में दवाइयों का सेवन करता है। यह बहुत स्वाभाविक बात है कि एल्कोहल का सेवन भी ज्यादा मात्रा में हो जाए जिससे शारीरिक या मानसिक दुष्प्रभाव देखने को मिले, जैसे याददाश्त की कमी, शरीर में पानी कमी, उल्टियां या फिर कुछ समय के लिए अपने होश खो देना।
अब आप समझ सकते हैं कि कैसे आयुर्वेद आधुनिक दुनिया में उसी तरह से काम कर रहा है जिस तरह से 5000 साल पहले वैध रूप में किया करता था।आप कोई और उदाहरण भी ले सकते हैं और ऊपर बताए सिद्धांतों को लागू कर सकते हैं, वो भी यह देखने के लिए कि आयुर्वेदिक दृष्टिकोण क्या होगा। पैकेटबंद, फ्रोजन फूड, आनुवांशिक रूप से संशोधित किए गए आहार और कार्बोनेटेड पेय भी कुछ उदाहरण हैं। यह पद्धति आपके दैनिक जीवन को गाइड करने में बहुत लाभदायक रहेगी या फिर यह तब भी मदद करेगी जब आपको बनावटी या प्राकृतिक में से कोई एक स्रोत चुनना होगा।
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क्या यह हमारे वातावरण में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है?
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यह हमारे अंग और उसकी कार्यप्रणाली पर कैसे असर डालता है?
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क्या यह हमारी इंद्रियों को उत्तेजित या शांत करता है?
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दौड़ना, साइकिल चलाना आदि भारी व्यायाम न करें जो पित्त को बढ़ाते हैं। योग, टहलना,तैरना और स्ट्रेचिंग करना अच्छा रहेगा।
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क्या इस पदार्थ का सेवन बहुत ज्यादा या बहुत कम है?
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क्या इस पदार्थ का इस्तेमाल मेरे शरीर या वातावरण को दूषित करता है?
प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सीय सिद्धांत और विज्ञान किसी भी उम्र के इंसान के लिए प्रासंगिक है। इसका इस्तेमाल कई शताब्दियों से पूरी दुनिया में लोगों के उपचार के लिए किया जा रहा है। 21वीं शताब्दी में भी यह प्रासंगिक रूप से जारी रहेगा वो भी तब जब हम हमारे फायदे के लिए ही बताए गए इसके मूल संदेशों को चुनें और समझें।