बारिश के मौसम में पाचन की अग्नि कमजोर होती है। पूरी गर्मियों में वात दोष शरीर में इकट्ठा होता जाता है और अग्नि को बिगाड़ता है जिससे पाचन की शक्ति पर भी असर पड़ता है। जब दोष असंतुलित हो जाते हैं तो यह कई तरह की पेट से जुड़ी समस्याएँ पैदा करते हैं जैसे दस्त और पेचिश।
बारिश के मौसम में वातावरण में आए बदलाव के बुरे असर से बचने के लिए आयुर्वेद वर्षा ऋतुचर्या अपनाने की सलाह देता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक भारत में 6 मौसम आते हैं इसमें शिशिर, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद और हेमंत शामिल हैं और इन सभी के लिए आयुर्वेद एक खास जीवनशैली और आहार नियम बताता है, जो दोषों को असंतुलित होने से बचाते हैं। बारिश के मौसम यानि वर्षा ऋतु को लेकर जो दिशा निर्देश दिए गए हैं उन्हें वर्षा ऋतुचर्या कहते हैं।
हम आपको कुछ आसान जीवनशैली और आहार के बारे में बताएंगे जो वर्षा ऋतुचर्या से जुड़े हैं, इसको अपनाकर आप अपच, पेट फूलना, सर्दी या दूसरे मौसमी विकारों की चिंता किए बगैर बारिश के मौसम का मज़ा ले सकते हैं।
बजाए दूध के, खाने के बाद छाछ का सेवन कर सकते हैं। आयुर्वेद बारिश के मौसम में पंचकर्म उपचार की भी सलाह देता है,चूंकि साल के इस समय में त्वचा के रोमछिद्र खुले रहते हैं और इस उपचार का ज्य़ादा फ़ायदा मिलता है। अपनी जीवन शक्ति, ताकत और रक्षा प्रणाली को दोबारा मज़बूत बनाने के लिए आज ही जीवा से ‘पंचकर्म उपचार’ लें।
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