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आयुर्वेद को पूरे विश्व में बड़े स्तर पर सेहत से जुड़ी ज़रुरतों को पूरा करने वाली प्राकृतिक चिकित्सा के तौर में मान्यता दी गई है। हालांकि दुनियाभर में इसकी बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद बहुत से लोग खासतौर से युवा आयुर्वेद की तरफ़ आने से हिचकिचाते हैं। इसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं जैसे इस प्राचीन विज्ञान के बारे में कम जानकारी होना, आधुनिक दवाइयों का आसानी से उपलब्ध हो जाना और नौजवानों में तुरंत नतीजे हासिल करने का जुनून। इन सभी में आयुर्वेद को नौजवानों तक पहुँचने में जिस चीज़ ने सबसे ज्य़ादा नुकसान पहुँचाया है वो है इससे जुड़ी गलत धारणाएं, जिसके चलते इसके अस्तित्व को माना ही नहीं गया।
गोलियाँ तुरंत राहत देती हैं,आयुर्वेद में वक्त लगता है
आयुर्वेद में तेज़ और धीरे असर करने वाली दोनों तरह की औषधियाँ मौजूद हैं। दरअसल ये सब बीमारी के मूल कारणों पर निर्भर करता है। आधुनिक दवाइयों की तरह आयुर्वेद सिर्फ़ लक्षणों पर इलाज नहीं करता बल्कि वह बीमारी की असल जड़ को खत्म करने की कोशिश करता है। अगर बीमारी की वजह बड़ी है तब आयुर्वेदिक इलाज में उसे पूरी तरह ठीक होने में वक्त लगता है। इसके अलावा कई मरीज तो इलाज के दूसरे सारे तरीके अपनाने के बाद जाकर आयुर्वेद के पास आते हैं और तब तक उनकी बीमारी बहुत पुरानी और गंभीर हो चुकी होती है। बदकिस्मती से ऐसे मामलों में बहुत से लोगों में आयुर्वेदिक औषधियों के असर दिखाने तक का धैर्य नहीं होता है। जब वो देखते हैं कि तुरंत सुधार नहीं हो रहा है तो वो तुरंत ही दूसरे विकल्प तलाशने लगते हैं। यह समझना ज़रुरी है कि अगर बीमारी की शुरुआत में ही मरीज आयुर्वेद की शरण में आएँ और अपने शरीर को ठीक करने का वक्त दे तो ये बेहद प्रभावी है।
आयुर्वेद दादी के घरेलू नुस्खों से ज्य़ादा कुछ नहीं है
आयुर्वेद सिर्फ़ बीमारी के इलाज का तरीका नहीं है बल्कि ये जीवनशैली है। हां इसका एक बड़ा हिस्सा जड़ी बूटी और घरेलू नुस्खे हैं लेकिन सिर्फ़ यही नहीं है। अगर इसे पूरी तरह से अपनाया जाए तो आयुर्वेद के सिद्धांत आपकी ज़िंदगी को ज्य़ादा संतुलित,सेहतमंद और उपयोगी बनाने में बेहद मददगार साबित हो सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक औषधियाँ और मिश्रण जड़ी बूटियों,खनिजों, तेलों और दूसरी प्राकृतिक चीज़ों से मिलकर बने होते हैं, और यह हर व्यक्ति की अलग-अलग प्रकृति को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। यही नहीं चूंकि आयुर्वेद में बीमारी के मूल कारण पर ज्य़ादा ज़ोर दिया जाता है इसलिए इलाज का हर तरीका दादी मां के घरेलू नुस्खों की तरह हर किसी पर लागू नहीं होते हैं।
आयुर्वेद सिर्फ़ गंभीर बीमारियों वाले लोगों के लिए है
ज्य़ादातर लोग शुरुआती समस्या में आयुर्वेद अपनाते ही नहीं हैं क्योंकि वो मानते हैं कि यह सिर्फ़ गंभीर बीमारियों के लिए है। मान लिया कि गंभीर बीमारियों खासतौर से मधुमेह, गठिया, अस्थमा, मोटापा, त्वचा के रोग वगैरह में ये कारगर साबित हो चुकी है लेकिन ये आमतौर पर होने वाली साधारण बीमारियों जैसे अपच, सिरदर्द, सर्दी-खाँसी, बुखार वगैरह में भी असरदार है। आयुर्वेद में हर मरीज को जड़ी बूटियों से बनी दवाइयाँ, पंचकर्म उपचार, संतुलित आहार दिया जाता है और सटीक जीवनशैली बताई जाती है, चाहे बीमारी गंभीर हो या ना हो।
आयुर्वेद के सिद्धांत आधुनिक विज्ञान के साथ मेल नहीं खाते
दुनिया का इलाज का सबसे पुराना तरीका होने के बावजूद आयुर्वेद आधुनिक विज्ञान के साथ जुड़ा हुआ है। आयुर्वेद के मुताबिक हर इंसान का शरीर उसके तीन दोषों वात, पित्त और कफ से मिलकर बना है। इनमें हुआ असंतुलन ही शारीरिक बीमारी की सीधी वजह बनता है। ना दिखाई देने के बावजूद ये शरीर को ऊर्जा देने, उसकी फुर्ती, उसका रक्तसंचार और पाचन तंत्र की क्रियाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं। दशकों से आधुनिक विज्ञान त्रिदोष सिद्धांत को समझने की कोशिश कर रहा है ताकि वो इंसानी शरीर की ज्य़ादा जानकारियां जुटा सके। यहाँ तक कि न्यूयॉर्क टाइम्स के ताजा आर्टिकल में बताया गया कि वैज्ञानिकों ने इंसानों में तीन तरह के पारिस्थितिक तंत्र को खोजा है जिसकी मदद से लोगों को अलग-अलग वर्गों में बाँटकर अलग-अलग तरीके से इलाज में मदद मिल सकती है। कौन जानता है कि ये आयुर्वेद की भूमिका को आधुनिक विज्ञान में प्रभावी बनाने का दूसरा कदम हो!
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