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भुजंगासन कैसे करें?

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कुण्डलिनी ऊर्जा के जागरण की अत्यन्त गोपनीय विधियों में से एक है भुजंगासन पूर्ण सूर्य नमस्कार की पांचवीं स्थिति, भुजंगासन, संस्कृत के शब्द ‘भुजंग’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ होता है ‘सर्प’ और आसन का अर्थ है ‘स्थिति’। इसे कोबरा सर्प की स्थिति (सर्पासन) भी कहा जाता है, यह आसन अधिक झुकाव की प्राथमिक नींव है। इस आसन में, पूरा शरीर कोबरा के सिर की तरह उठ जाता है, जो सर्पाकार कुण्डलिनी-मेरुदण्ड के आधार में कुण्डली के रूप में स्थित विभव ऊर्जा के जागरण का प्रतीकात्मक रूप होता है। अगर यह ठीक से किया जाये तो यह हमारी मेरुदण्ड और कमर के निचले भाग को शक्ति देता है।

विधिः

  • आसन आरम्भ करते समय, सर्वप्रथम फर्श पर अपने पेट के बल लेट जायें। अपने सिर को फर्श पर आराम की स्थिति में छोड़ दें। सुनिश्चित कर लें कि आपकी सारी पेशियां शिथिल होनी चाहिए। अब, अपने पैरों को साथ कर लें और हो सके तो पूरे आसन में इस स्थिति को बनाये रखें।

  • अपनी भुजाओं को अपने कंधों के नीचे की तरफ शरीर के साथ सटाकर रखें। हाथ सीने के पास होने चाहिए।

  • धीरे-धीरे सांस खींचें और अपने सीने और सिर सहित शरीर के ऊपरी भाग (धड़) को जितना संभव हो सके, ऊपर उठायें। इस चरण को धीरे-धीरे करने की कोशिश करें जिससे कि कोई झटका न लगे।

  • जब आप यह आसन कर रहें हों, आपका सिर और सीना ऊपर की ओर होना चाहिए।

  • अपनी भुजायें फैलाकर रखें जिससे कि वे फर्श पर लम्बवत् खड़ी रहें। अपनी पीठ के पिछले हिस्से को ढीला रखते हुए अपना सारा भार हाथों पर छोड़ दें।

  • इस स्थिति को कई गहरी सांसों के साथ बनाये रखें और जब षरीर को नीचे की स्थिति में वापस ला रहे हों और अपने हाथों को शरीर के सामने ला रहे हों तब धीरे-धीरे सांस छोड़ें।

केन्द्र-बिन्दु

  • पांव और टांगें
  • श्रोणि (पेडू) और नितम्ब
  • कन्धे और बाहें लटके हुए

लाभ

  • मेरुदण्ड मजबूत होती है।
  • सीना और फेफड़े फेलते हैं, कन्धे और पेट को लाभ मिलता है।
  • नितम्ब मजबूत होते हैं।
  • पेट के सभी अंग उद्दीप्त होते हैं।
  • थकान और तनाव से छुटकारा दिलाने में मदद करता है।
  • हृदय और फेफड़े खुल जाते हैं और यह दमा की चिकित्सा में सहायक है।
  • पारम्परिक ग्रंथों में कहा गया है कि भुजंगासन शरीर की गर्मी को बढ़ाता है, बीमारियों को दूर भगाता है और कुण्डलिनी जागृत करता है।

सावधानियां

इस आसन को नहीं करना चाहिये अगर-

  • आपको हाल ही में पीठ या रीढ़ में चोट लगी हो।

  • आपकी पीठ की पेशियां कमजोर हों।

  • आप गर्भवती हैं।

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