कारण:
ज्यादातर बुखारों के मुकाबले डेंगू बुखार भी मच्छरों के जरिए ही फैलता है। एडीज़ इजिप्टी मच्छर इसके वायरस को एक इंसान से दूसरे इंसान तक ले जाता है। मच्छर अपना प्रजनन पानी वाली जगहों पर या किसी पानी से भरे गड्ढे में करते हैं। इसलिए डेंगू संक्रमण भारत में अक्सर बारिश के मौसम में ज्य़ादा फैलता है क्योंकि बारिश का पानी जहां तहां इकट्ठा होकर मच्छरों को पनपने का मौका देता है।
मच्छर का काटना छोड़ भी दें तो डेंगू वायरस किसी के भी शरीर में संक्रमित खून, सीरम और प्लाज्म़ा से भी जा सकता है। यह अलग बात है कि ज्य़ादातर मामलों में एडीज़ इजिप्टी मच्छर ही डेंगू वायरस को फैलाता देखा गया है। मादा मच्छर को यह वायरस किसी बुखार से पीड़ित संक्रमित व्यक्ति को काटकर मिलता है। मच्छर के अंदर यह वायरस और पनपता है फिर मच्छर के सलाइवा तक पहुंच जाता है। आमतौर पर इस मादा मच्छर का भोजन इंसानी खून है और यह पानी वाली घरेलू जगहों पर अपने अंडे देती है, जिससे इस वायरस का फैलाना आसान हो जाता है। इस मच्छर का एक बार काटना ही सेहतमंद इंसान को वायरस से संक्रमित करने के लिए काफी होता है।
बुखार का हमला:
एक बार जब मच्छर के जरिए यह वायरस इंसानी शरीर में पहुंचा तो 3 से 15 दिनों के अंदर डेंगू बुखार आ जाता है। ज़रूरी नहीं है कि सभी लोगों को मच्छर के काटने पर डेंगू बुखार ही आ जाए, कई बार इसके लक्षण नज़र नहीं भी आते हैं। 20 प्रतिशत से कम लोगों में ही इस बीमारी के लक्षण साफ-साफ दिखाई देते हैं।
शुरुआती 2 से 7 दिनों के अंदर बुखार, सिरदर्द, शरीर में दर्द, मितली आना, उल्टियां, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होता है। यह वायरस रक्त कोशिकाओं को जोड़ता है, जिसकी वजह से शरीर की छोटी रक्त कोशिकाओं में रिसाव होने लगता है, यह रिसाव त्वचा के अंदर जमा हो जाता है। इस कारण से त्वचा में चकत्ते पड़ जाते हैं। यह लक्षण कई दूसरी बीमारियों में भी दिखाई देते हैं, डेंगू का पक्के तौर पर तभी पता चलता है जब मरीज़ के सीरम में डेंगू के एंटीबॉडीज़ दिखाई दें।
हलांकि बुखार एक हफ्ते के अंदर ही कम होने लगता है और ज्य़ादातर लक्षण गायब भी हो जाते हैं, मगर कुछ मरीज़ों के शरीर में खून का रिसाव हो सकता है। यह तब होता है जब वायरस अस्थि मज्जा पर असर डालता है, इसकी वजह से शरीर में प्लेटलेट्स बनने कम हो जाते है। चूंकि प्लेटलेट्स खून का थक्का बनाने के लिए ज़रूरी है इसलिए इसकी गिनती कम होने की वजह से खून का रिसाव शुरू हो जाता है।
खून के रिसाव के इस दौर में आमतौर पर शरीर ठीक होने लगता है क्योंकि शरीर खून के रिसाव को दोबारा सोख लेता है। बुखार की वजह से आई कमजोरी अगले कुछ हफ्तों तक रहती है। हलांकि कुछ मामलों में जानलेवा स्थिति भी बन जाती है जिसके लिए खास उपचार की जरूरत पड़ती है।
आयुर्वेदिक नज़रिया और उपचार:
आयुर्वेदिक नज़रिए से देखें तो डेंगू बुखार बिगड़े वात और पित्त दोष को दिखाता है। आमतौर पर बीमारी की शुरुआत कमज़ोर पाचन अग्नि और विषाक्त आम के बनने से होती है। इसकी वजह से आगे चलकर वात और पित्त दोष बिगड़ते हैं और अलग-अलग लक्षण दिखाई देने लगते हैं। मांसपेशियों और जोड़ों का दर्द वात के बढ़ने का इशारा है, खून का रिसाव होना पित्त दोष की अधिकता बताता है।
डेंगू के आयुर्वेदिक उपचार में पूरी तरह से आराम करना शामिल है। बढ़े हुए वात के लिए ज़रूरी है कि ऐसे काम ना किए जाएं जिनसे वात बढ़ता हो।
ठंडे वातावरण से बचाने और संक्रमण फैलने से रोकने के लिए मरीज़ के शरीर को कंबल से ढंकना चाहिए।
चूंकि पाचन की अग्नि इस दौरान आमतौर पर कमज़ोर होती है और पाचन तंत्र में विष हावी रहता है, इसलिए मरीज़ों को सलाह दी जाती है कि वो हल्का और जल्दी पचने वाला भोजन खाएं। अलग-अलग दालों और सब्जियों से बना सूप, चावल, दलिया वगैरह फायदेमंद रहेगा।
तले हुए, मसालेदार, खट्टे और मैदे से बने व्यंजनों से बचें क्योंकि यह शरीर में विष पैदा करते हैं और बुखार के लिए अनुकूल वातावरण बनाते हैं।
शरीर को पानी की कमी से बचाने के लिए उपयुक्त मात्रा में पानी पिएं। पपीते की पत्तियों का रस पीना चाहिए क्योंकि यह प्लेटलेट्स की मात्रा को नियमित रूप से बढ़ाता है।
दवाइयां विष को पचाने, पाचन अग्नि को बढ़ाने, वात और पित्त को शांत करने और बुखार को कम करने के लिए दी जाती हैं। गुडूची, मस्ता, पर्पटक, खस, चंदन, धनव्यास, तुलसी और पथ जैसी जड़ी बूटियां इसके लिए बहुत फायदेमंद साबित होती हैं। पित्त को शांत करने, खून के रिसाव को बंद करने के लिए खस, चंदन, कामदुधा रस और चंद्रकला रस खासतौर पर फायदा पहुंचाते हैं।
मरीज़ को पीने के लिए गर्म पानी देना चाहिए और मरीज़ को नहलाने के बजाए गीले स्पंज के सहारे उसका शरीर पोंछना चाहिए।
बचाव,खानपान और जीवनशैली:
ज्य़ादातर मच्छर से फैलने वाले संक्रमणों से बचने का एक ही रास्ता है मच्छरों को पनपने ही ना देना। अपने आसपास सफाई रखें, जहां तहां पानी इकट्ठा ना होने दें, जहां पानी इकट्ठा होता ही हो वहां पर मच्छर मारने वाली दवाइयां छिड़कें, घर में जहां पानी रखते हों उसे ढंककर रखें, इन सब कामों से मच्छरों का प्रजनन बंद हो जाएगा और डेंगू जैसी बीमारियां खत्म हो जाएंगी।
मच्छरों को मारना तब तो बहुत ही ज़रूरी हो जाता है जब यह रोग महामारी बन रहा हो और आसपास का इलाका साफ ना हो। पानी को जमा होने से रोकने के लिए आसपास के गड्ढों को भरें और जल निकासी की जगहों को ढंककर रखें।
खुद को स्वस्थ रखने के लिए अच्छा भोजन, व्यायाम और तनाव ना लेना महत्वपूर्ण है। पहले ही हमने आपको बताया है कि सारे लोग ही मच्छर के काटने से बीमार नहीं हो जाते हैं। मजबूत शारीरिक रक्षा प्रणाली, दोषों का संतुलित रहना और मजबूत धातुएं निश्चित तौर पर बीमारियों से ग्रसित होने की संभावनाओं को कम करती हैं और यहां तक कि किसी बीमारी की वैक्सीन ना होने पर भी सेहत ठीक रखती है।
मच्छरों को दूर भगाने वाले रसायन, मच्छरदानी और शरीर को कपड़ों से ढंककर रखने से भी कोई शख्स खुद को मच्छर के काटने से बचा सकता है और वायरस के संक्रमण से बच सकता है।
मसालेदार, तला हुआ व्यंजन और मांसाहार से पाचन की अग्नि पर बोझ पड़ता है, इसलिए इनसे पूरी तरह से बचना चाहिए और शाकाहारी भोजन तक ही खुद को सीमित रखना चाहिए। रसदार फल, अंजीर, पपीता खा सकते हैं, लेकिन केले,आम वगैरह खाने से बचना चाहिए।
खुले में रखे जाने वाले फल या खानेपीने की चीजों से बचना चाहिए और अंजान जगहों का या गंदा पानी नहीं पीना चाहिए। च्यवनप्राश खाने से भी आप अपने शरीर की रक्षा प्रणाली को मजबूत बना सकते हैं।
बारिश में भीगने से बचें और अगर भीग भी जाएं तो गीले कपड़ों को तुरंत बदल लें।
ऐसी जगहों पर भी जाने से बचना चाहिए जहां पर डेंगू पहले से ही फैला हुआ हो।
योग, प्राणायाम, आध्यात्मिक पढ़ाई करना फायदा पहुंचाता है और कपूर या उसके जैसा कोई दूसरा पदार्थ जलाने से भी मच्छरों का पनपना खत्म होता है।