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डायबिटिक रेटिनोपैथी

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अहितादशनात्सदा निवृत्ति। र्भृशभास्वच्च लसूक्ष्मवीक्षणाच्च। परमं रक्षणमीक्षणस्य पुंसाम्।। (वा0 उत्तर 13/100)

अर्थात्- अहित भोजन से सदा निवृत्ति और अतिशय चमकीलें, चंचल, सूक्ष्म वस्तुओं को न देखना, मनुष्य की आँखों की रक्षा के श्रेष्ठ उपाय कहे हैं।

डायबिटिक रेटिनोपैथी को आयुर्वेद में मधुमेहज दृष्टिपटल रोग कहा जाता है। इसमें मधुमेह से पीडित व्यक्ति की रेटिना प्रभावित होती है। यह रेटिना को रक्त पहुँचाने वाली महीन नलिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के कारण होता है। यह दुनिया में अंधेपन का सबसे बड़ा कारण है जो हर साल बढ़ता जा रहा है।

मधुमेह रेटिना को प्रभावित कैसे करती हैः

रेटिना आँखों के अंदर एक नाज़ुक पतली प्रकाश सम्बन्धी परत होती है। रक्त में जब शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है तब वह रक्त नलिकाओं को क्षतिग्रस्त कर देती है। परिणामस्वरूप रक्तस्राव होता है जिससे रेटिना में सूजन हो जाती है। रेटिना को स्वस्थ्य रखने के लिए ज़रूरी पोषक तत्व और ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो जाती है। आँखों से धुंधलापन दिखाई देता है। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, रेटिना में ;छमव अेंबनसंतपेंजपवदद्ध के द्वारा रक्त नलिकाएं पनपने लगती हैं जो ऑक्सीजन आपूर्ति में बाधा डालती हैं। यह रक्त नलिकाएं कमज़ोर होने के कारण कभी भी फट सकती हैं और रक्त स्राव के कारण नज़र कमज़ोर हो सकती है या दृष्टि भी जा सकती है।

लक्षणः

  • आँखों का बार-बार संक्रमित होना।

  • चश्मे का नम्बर बार-बार बदलना।

  • रेटिना से खून आना।

  • सफेद मोतियाबिन्द या काला मोतियाबिन्द।

  • सिरदर्द या अचानक आँखों की रोशनी कम हो जाना।

  • सुबह उठने के बाद कम दिखाई देना।

  • आँखों के सामने तैरते धब्बे नज़र आना।

इसके दो मुख्य चरण होते हैः

पहला नान प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक

रेटिनोपैथी (एनपीडीआर) इसमे रेटिना की नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। सामान्यतः यह शुरुआती चरण होता है, इसमें लक्षणों का पता नहीं चलता है।

कुछ मरीजों में क्षतिग्रस्त रक्त नलिकाओं के फटने से रेटिना के मध्य भाग में रक्त फैल जाता है। इस स्थिति को डायबिटिक मैक्युलोपैथी कहते हैं। इसमें दृष्टि प्रभावित होती है और धुंधला दिखने लगता है।

दूसरा प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी (पीडीआर) कहते हैं। यह सबसे गम्भीर चरण है। इसमें रेटिना में कमज़ोर अवांछनीय रक्त नलिकाएं तेजी से पनपने लगती हैं जो रेटिना की ऑक्सीजन आपूर्ति में बाधा पैदा कर उसे क्षतिग्रस्त करती हैं। इस कारण रेटिना डिटेचमेंट या ग्लूकोमा या अंधापन हो जाता है।

सामान्यतः एलोपैथिक चिकित्सा में इसमें लेज़र या इंजेक्शन एवास्टिन या इंजेक्शन लुसेनतीस दिया जाता है लेकिन इसके बाद भी इस बीमारी से निजात नहीं पाया जाता है और रोशनी कम होती जाती है।

आयुर्वेद चिकित्सा के माध्यम से इसे रोका जा सकता है और आँखों की दृष्टि बढ़ाई जा सकती है। औषधि और नेत्र पंचकर्म के द्वारा आयुर्वेद इस बीमारी को ठीक करने में मददगार सिद्ध होता है।

इसके लिए उपचारः

  • रक्त में कोलेस्ट्रोल और शुगर की मात्रा को नियंत्रित रखें।

  • आँखों में दर्द, अंधेरापन हो तो तुरंत चिकित्सक से मिलें।

  • विटामिन ए युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें।

  • पालक, हरी सब्ज़ियों का सेवन करें।

  • काले अंगूर के बीजों का रस पिएं।

  • आंवला, त्रिफला, जौ के सत्तू का प्रयोग करें।

  • त्रिफला क्वाथ में गो घृत मिला कर लें।

  • नीम की छाल का 1 चम्मच रोज सेवन करें।

  • नागरमोथा और परवल के पत्तों का क्वाथ लें।

  • सुबह खाली पेट आंवले और अमृता का स्वरस लें।

नोट:

आंखों से सम्बन्धित रोगों के उपचार हेतु जीवा आयुर्वेद के नेत्र चिकित्सक से परामर्श करें।

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