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शिशिर- जनवरी, फरवरी
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वसंत- मार्च, अप्रैल
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ग्रीष्म- मई, जून
जब सूर्य दक्षिणायन होते हैं तो उसकी रोशनी सीधी नहीं पड़ती और गर्माहट कमहोती है। इस समय में चंद्रमा ज्य़ादा ताकतवर होता है, इसलिए वह जड़ी बूटियों और धरती के जीवों का पोषण करता है क्योंकि उसका असर ठंडक भरा होता है। इस समय को कहा जाता है विसर्ग कला, इस समय में शारीरिक ताकत बढ़ती है। इनमें तीन मौसम शामिल होते हैं:
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वर्षा- जुलाई, अगस्त
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शरद- सितंबर, अक्तूबर
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हेमंत- नवंबर, दिसंबर
हर मौसम का त्रिदोषों पर अपना अलग प्राकृतिक असर होता है, ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि आप ऐसी खास दिनचर्या का पालन करें जो मौसम के हिसाब से बनाई गई हो। आयुर्वेद में ऋतुओं के हिसाब से कुछ आहार नियम बनाए गए हैं जो ऋतुचर्या के अंतर्गत आते हैं। ऋतु का मतलब मौसम और चर्या का मतलब हैहर दिन किए जाने वाला काम।
सर्दियों के लिए आहार नियम (हेमंत ऋतुचर्या):
शारीरिक ताकत और पाचन क्रिया सर्दियों में चरम पर होती है। सर्दियों में शरीर के अंदर गर्मी होती है जो बाहर के ठंडे मौसम से शरीर की रक्षा करती है। यह शरीर के पाचन तंत्र को मज़बूत बनाती है और उसको अच्छी खासी मात्रा में मौजूद भोजन को पचाने में सक्षम करती है। मौसमी आहार जो इस समय में मिलते हैं वो पोषण से भरे हुए होते हैं। यह मौसम खासतौर से शरीर की रक्षा प्रणाली (ओज) को मजबूत बनाता है।
आहार:
सर्दियों में तेल,वसा, ताजे दूध से बने उत्पाद जैसे दही या पनीर, मीठा, खट्टा और नमकीन भोजन का सेवन कर सकते हैं। इस में बाहर का मौसम ठंडा होता है और शरीर अपनी गर्मी को बचा कर रखता है। इसकी वजह से पाचन की अग्नि यानि जठराग्नि मजबूत हो जाती है और पाचन तंत्र गरिष्ठ भोजन जैसे वसा और दूध से बनी हुई चीजें पचाने के लिए तैयार रहता है। राजमा, उड़द दाल, अनाज, हर्बल शराब, और शहद का सेवन कर सकते हैं। गर्म पानी या अदरक की चाय का सेवन भी सर्दियों में किया जा सकता है।
आयुर्वेद में 6 तरह के स्वाद वाले आहार बताए गए हैं- मीठा, खट्टा, नमकीन, तेज़, कसैला, और कड़वा। सर्दियों में मीठा, खट्टा और नमकीन स्वाद वाले आहार का सेवन खासतौर से फायदेमंद रहता है। कड़वे और मसालेदार आहार से बचना चाहिएक्योंकि यह शरीर में रूखापन बढ़ाता है।
ठंडा पानी, आइसक्रीम, वासी भोजन या पेय का सेवन ना करें। ध्यान रखें कि ज्यादा ना खाएं और जितनी भूख हो उतना ही खाएं।सर्दियों में कम मात्रा में आहार लेने से वात दोष बढ़ता है।
गतिविधियाँ:
ठंडे या नम वातावरण में प्राकृतिक तौर पर कफ इकट्ठा हो जाता है, तो ऐसे में खुद को गर्म रखना ज़रूरी होता है। ठंडा मौसम वात दोष के बढ़ने का कारण होता है। गर्म पानी से नहाना, सोना, सनबाथ और गर्म घरों में रहना इस मौसम में फायदेमंद रहता है। भारी, गर्म और सूखे कपड़े पहनना चाहिए। शरीर और सिर की सूखी मालिश करना चाहिए, लेकिन वात बढ़ा हुआ हो तो हल्के गर्म तिल,सरसों या जैतून के तेल की मालिश फायदेमंद रहती है।
तेल की मालिश से सूखापन खत्म होता है और यह त्वचा में नमी लाता है। सुबह नहाने के बाद प्राकृतिक मॉइश्चराइज़र के इस्तेमाल की भी सलाह दी जाती है
सर्दियों के आखिरी दिनों के आहार नियम (शिशिर ऋतुचर्या)
हेमंत और शिशिर ऋतुएं आमतौर पर एक जैसे होती हैं। इनको एकसाथ देखें तो इस समय को शीत काल कहा जाता है। शिशिर आदान कला यानिशरीर में पानी की कमी की शुरुआत का समय है। आगे चलकर यही गंभीर ठंड् और सूखापन को बढ़ा देती है। कभी कभार बादल आते हैं, तेज़ हवाएँ चलती हैं और बारिश भी सर्दियों के इन दिनों हो जाती हैं।हेमंत के आहार नियम शिशिर में भी जारी रखने चाहिए। ठंडे भोजन और पेय या वात को बढ़ाने वाले आहारों से बचना चाहिए।
भारत की भौगोलिक स्थित ऐसी है कि सूर्य की किरणों का खासा असर उस पर पड़ता है और यही वजह है कि भारत में समान समय पर 6 मौसम आते हैं। मौसम और महीनों के बारे में जो बताया गया वह भारत की लोकेशनपर आधारित है, महीने और मौसम विश्व के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग समय पर आते हैं। लेकिन आप अपने क्षेत्र के हिसाब से मौसम के आहार नियम अपना सकते हैं।
ध्यान रखें कि आयुर्वेद की किताब में दिए गए वास्तविक वर्गीकरण दरअसल चंद्र कैलेंडर के हिसाब से किए गए हैं। मुमकिन है कि सौर महीने चंद्र महीनों से मेल ना खाएं, लेकिन ये दोनों लगभग एक जैसे होते हैं। उदाहरण के तौर पर देखें तो भारत में सर्दियां आती हैं दिसंबर और जनवरी में, लेकिन इस समय में ऑस्ट्रेलिया में गर्मियां होती हैं। एक तरह से देखें तो ऑस्ट्रेलिया के लोगों को गर्मियों के आहार नियमों का पालन करना चाहिए ना कि सर्दियों वाले।