गोमुखासन में बैठने के पश्चात् घुटनों की आकृति गाय के मुख के समान बन जाती है और बगल से निकले पांव गाय के कानों की तरह दिखते हैं इसीलिए इस आसन को गोमुखासन कहा जाता है। इसके नियमित अभ्यास से स्त्री, पुरूष, युवा, बुजुर्ग सभी लाभ उठा सकते हैं। खासकर, कमरदर्द, घुटनों के दर्द, साईटिका व जोड़ों के दर्द से ग्रसित लोगों के लिए यह आसन बहुत लाभकारी है।
विधिः
कमर को व दोनों टांगों को सामने की ओर सीधा रखते हुए बैठ जायें। अब दाईं टांग को घुटने से मोड़ते हुए दायें पांव को बायें नितम्ब के पास रखें। अब बाईं टांग को घुटने से मोड़ते हुए घुटने के ऊपर इस प्रकार रखें कि बायां घुटना दायें घुटने के ऊपर और बायां पांव दायें नितम्ब के पास जमीन पर टिक जाये। अब बायां हाथ सीधा रखते हुए; हथेली आसमान की ओर ऊपर उठायें और कोहनी से मोड़ते हुए हाथ पीछे की तरफ इस प्रकार मोड़ें कि कोहनी कानों के पास ऊपर आकाश की तरफ रहे। दायां हाथ कमर के पास से पीठ की तरफ मोड़कर बायें हाथ की उंगलियों को पकड़ लें। कमर, गर्दन व सिर को सीधा रखें। धीरे-धीरे लम्बा व गहरा श्वास लेते रहें और आंखें बन्द कर ध्यान को श्वास पर टिका कर कुछ देर बैठने के बाद इसी प्रकार पैरों की स्थिति बदल कर करें।
लाभः
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उंगलियों, कलाई व कन्धों के विकारों को दूर करता है।
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गुर्दों को सशक्त कर बहुमूत्र रोग को दूर करता है।
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पांव, ऐड़ी, पंजों में रूके विकारों को दूर कर शक्ति प्रदान करता है।
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गर्दन को सुन्दर व सुडौल बनाता है।
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साईटिका व जोड़ों के दर्द के लिए यह अति लाभकारी है।
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यह फेफड़ों को मजबूत बनाता है।
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दमा के रोगी इसके नियमित अभ्यास से लाभ उठा सकते हैं।
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गोमुखासन का नियमित अभ्यास युवाओं तथा नौजवानों के लिए बल एवं पुष्टिवर्धक है।
सावधानियां
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घुटनों या नितम्बों में दर्द रहता हो तो पैरों को पीछे की तरफ अधिक दूरी तक न मोडें।
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कंधों या कमर में भयंकर बीमारी या चोटग्रस्त होने की स्थिति में यह अभ्यास न करें।
विशेषः
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कोई भी आसन करने से पूर्व किसी योग विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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योगाभ्यास शान्तचित्त व तनाव रहित होकर करें व करते समय ध्यान को श्वास पर या प्रभावित अंगों पर टिका कर रखें।
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याद रखें योग मजा है सजा नहीं।