हलासन शरीर के अधिकांश अंगों को स्वस्थ एवं मजबूत रखने में सहायक है। इस आसन के साथ सांसों का संयोजन इसे अधिक लाभप्रद बनाता है।
हलासन या हल की मुद्रा। इसमें शरीर को हल का आकार दिया जाता है। हलासन हमारे शरीर को लचीला बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। इस आसन के अभ्यास से मेरूदंड, पीठ की मांसपेशियां लचीली और क्रियाशील बनती हैं। जैसे हल कठोर जमीन को हल्का करके कृषि योग्य बनाता है उसी प्रकार यह आसन भी नसों और मांसपेशियों को लचीला बनाता है।
सबसे पहले पीठ के बल किसी चटाई पर लेट जाएं और हाथों को अपनी जांघों के साथ जमीन पर सीधा में रखें।
सांस को बाहर निकाल दें, इसके बाद सांस को अन्दर लेते हुए दोनो पैरों को ऊपर उठाएं और फर्श से 90 डिग्री के कोण पर सीधा कर लें।
सांस छोड़ते हुए कमर और कूल्हों को उठायें और पैरों को पीछे की तरफ सिर से ऊपर उठाएं।
पूरी तरह से सांस बाहर निकालने के बाद, पैरों को पीछे की तरफ ले जाएं और पैरों की अंगुलियों से जमीन को स्पर्श करने का प्रयास करें।
कम से कम पांच सांसों के लिये इसे करें और सामान्य श्वसन जारी रखें।
सांस छोड़ दें फिर पैरों को घुटनों की सीध में रखते हुए जमीन से ऊपर उठाते हुए सांस को अन्दर लें।
सांस लेना जारी रखें और धीरे-धीरे पीठ को वापस ले आएं।
अब सांस को छोड़ते हुए पैरों को बिना झटके या तेजी के सामान्य स्थिति में वापस ले आएं।
जीर्ण कब्ज, अपच, गैस बनने और एसिडिटी के उपचार में प्रभावी।
आथ्राइटिस के दर्द, कंधे की अकड़न को ठीक करता है।
नसों को शुद्ध और पेट के अंगों को पुनः जीवंत करता है।
मेरुदण्ड को आराम देता है।
रीढ़ की हड्डी में लचीलापन प्रदान करता है।
यह आसन थायराइड ग्रन्थि को सक्रिय करके मोटापे को कम करता है।
तनाव और थकान को कम करता है।
अग्न्याशय को उद्दीप्त करता है और रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
प्लीहा (तिल्ली) में रक्त परिसंचरण तीव्र करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को अधिक मजबूती प्रदान करता है।
यह आसन स्त्रियों के लिए लाभकारी होता है। यह गर्भाशय के विकारों, मासिक के समय के दर्द जैसी तमाम बीमारियों से छुटकारा दिलाता है।
यदि आपको उच्च रक्तचाप, गर्भाशय, गले या रीढ़ की हड्डी में चोट आदि जैसी कोई समस्या हो आप प्लीहा (तिल्ली) अथवा यकृत, मलेरिया या हैपेटाइटिस जैसी बीमारी से ग्रसित हैं।
आप गर्भवती हैं।
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