जिस प्रकार एक अच्छी उपज के लिए अच्छे बीज का होना ज़रूरी है, उसी प्रकार स्वस्थ संतान के लिए शुद्ध और दोषरहित वीर्य का होना अनिवार्य है। वीर्य एक जैविक तरल पदार्थ है, जिसमें सामान्यतः शुक्राणु होते हैं। शुक्राणु, शुक्राशय ग्रंथि, पौरुष ग्रंथि तथा मूत्रप्रसेकीय ग्रंथियों से होने वाले स्राव का मिश्रण शुक्र यानि वीर्य है। वीर्य को ‘‘शुक्र‘‘ भी कहते हैं।
रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र....ये सात धातुएं शरीर को धारण करती हैं। ये क्रमशः पुष्ट होती हैं और हमारा आहार अंत में सातवीं धातु शुक्र के रूप में परिवर्तित होती है। सातों धातुओं के पुष्ट और सबल होने पर ही हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। इन सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र परम श्रेष्ठ होती है। शुद्ध और दोषरहित वीर्य गाढ़ा, चिकना, सफेद, मलाई जैसा मधुर, जलनरहित और कांच जैसा चिकना होता है। जबकि पतला, मैला, पीला, पतले दूध जैसा, बदबूदार, झागदार और पानी की तरह टपकने वाला वीर्य दूषित, कमज़ोर और विकारयुक्त होता है।
शुक्रं शुम्लं गुरू स्निग्धं मधुरं बहलं बहु। घृतमाक्षिक तैलाभं सद्गर्भाय ।।
वीर्य कैसे बनता है- वीर्य शरीर की बहुत मूल्यवान धातु है। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया बड़ी लंबी है। श्री सुश्रुताचार्य ने लिखा हैः
रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते। मेदस्यास्थिः ततो मज्जा मज्जायाः शुक्रसंभवः।।
अर्थात् जो भोजन पचता है, उसका पहले रस बनता है। पांच दिन तक उसका पाचन होकर रक्त बनता है। पांच दिन बाद रक्त से मांस, उसमें से 5-5 दिन के अंतर से मेद, अस्थि, मज्जा और अंत में शुक्र बनता है। इस प्रकार आहार से शुक्र बनने में करीब एक महीना लग जाता है।
अत्यधिक मैथुन
शक्ति से अधिक श्रम
पोषक तत्वों की कमी
अप्राकृतिक तरीकों से वीर्यपात
प्रकृति विरुद्ध पदार्थों का सेवन
रोगग्रस्त व्यक्ति के साथ यौन संबंध
मिर्च-मसालेदार / खटाई / मादक पदार्थों का सेवन
चिंता/ शोक/ भय/मानसिक तनाव
गुप्त रोग /क्षय रोग /वृद्धावस्था
अच्छा आहार अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है। यदि आहार अच्छा नहीं है व पाचन प्रक्रिया सही नहीं है तो रक्त कम बनेगा और रक्त कम बनने से अन्य धातुओं के साथ वीर्य भी गुण व मात्रा के रूप में कम बनता है। इसके साथ ही किसी भी तरह का रोग वीर्य बनने की प्रक्रिया को बाधित कर देता है या शरीर में संक्रमण होने से वीर्य की गुणवत्ता पर प्रभाव रहता है। वीर्य कम होने पर काम शक्ति और कामेच्छा भी कम हो जाती है। इसीलिए आयुर्वेद में विशेष आहार और औषधीय वनस्पतियां बताई गई हैं जिनका सेवन सम्पूर्ण स्वास्थ्य विशेष रूप से ओज व प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है। निम्न पदार्थों का सेवन शरीर में वीर्य को बढ़ाता हैः
मिश्री युक्त गाय का दूध
मक्खन / घी
चावल की खीर
उड़द की दाल
तुलसी के बीज
बादाम
अनार
खजूर
काले तिल
बबूल का गोंद
मुसली
अश्वगंधा
शतावर
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शुक्र धातु , वीर्य
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