जानु बस्ति एक ऐसी पद्धति जिसमें दवाओं के गुण वाला गर्म तेल घुटने के आसपास की सतह पर रखा जाता है। आइए देखें, यह पद्धति किस तरह कार्य करती है और इसके क्या लाभ हैं?
जानु बस्ति कैसे किया जाता है?
यह पद्धति करने के लिए रोगी को थेरेपी टेबल पर लिटाया जाता है। बेसन को पर्याप्त मात्रा में पानी के साथ गूंथ लिया जाता है। घुटनों के जिस हिस्से में पद्धति करनी होती है, उसके चारों ओर गुंथे हुए बेसन की मोटी दीवार बना दी जाती है। इसके बाद सहने योग्य, दवायुक्त गरम तेल प्रभावित हिस्से में बेसन की दीवर से बने कटोरेनुमा हिस्से में भरा जाता है। जब तक यह गर्म बना रहे तब तक भरा रहने दिया जाता है। जब तेल ठंडा होने लगे, तब इसे फिर गर्म तेल से बदल दिया जाता है। यह प्रक्रिया 20 से 45 मिनट तक की जाती है।
यह कैसे कार्य करती है?
आयुर्वेद में तेल को वात दोष शांत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक माना जाता है, यह वात दोष के कारण पैदा होने वाली जोड़ों की तकलीफों को ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस पद्धति में गर्म तेल को घुटने पर स्थिर रखा जाता है और इस कारण यह घुटने के ऊतकों में गहराई से प्रवेश कर जाता है। परिणामस्वरूप जोड़ों में चिकनापन पैदा करता है, Synovial fluid को पोषण प्रदान करता है और बढ़े हुए वात दोष को शांत करता है। बार-बार ऐसा करने पर जोड़ के ऊतकों को नई जान मिलती है और ऊतकों को पहुंचे नुकसान भी ठीक होते है।
जानु बस्ति के लाभ
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घुटने के जोड़ों में दर्द व अकड़ कम करता है
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जोड़ों को चिकनापन देकर गतिशीलता बढ़ाता है
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घुटने की तकलीफों को ठीक करने में सहायक है
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ऑस्टियोऑर्थराइटिस, सूजन और आयु संबंधी विकारों में लाभ पहुँचाता है
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जोड़ों को पोषण और मजबूती प्रदान करता है
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पंचकर्म पद्धतियों को हमेशा आयुर्वेद विशेषज्ञ के देखरेख में ही लेना चाहिए।