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जीवा जापान में व्यवहारिक आयुर्वेद का प्रसार कर रहा है।

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कई सालों तक जापान में आयुर्वेद को बस तेल से मालिश करवाना माना जाता था और उसे आयुर्वेद सलून कहा जाता था। जबसे जीवा ने एक दशक पहले टोक्यो में शैक्षणिक कार्यक्रम चलाने शुरू किए, ज्य़ादा से ज्य़ादा लोगों ने आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों और इसके व्यवहारिक प्रयोगों का सीखा और उससे उन्हें एक खुशहाल और सेहतमंद ज़िंदगी मिली । टोक्यो का ‘जीवा जापान आयुर्वेद स्कूल’ जापान का प्रमुख आयुर्वेद स्कूल है। आयुर्वेद के व्यवहारिक ज्ञान के अलावा विद्यार्थी वैदिक दर्शन, वैदिक मनोविज्ञान और भगवद गीता सीख रहे हैं। स्कूल में भगवान धनवंतरी की एक खूबसूरत मूर्ति देव स्वरूप रखी गयी है जिसपर वहां के बच्चे फूल चढ़ाते हैं और नियमित रूप से कीर्तन करते हैं।

जीवा आयुर्वेद के निदेशक डॉ. प्रताप चौहान ने अपने हालिया जापान दौरे पर मूत्रजनंनागों से संबंधित विकारों और आयुर्वेद पर एक साप्ताहिक वर्कशॉप भी आयोजित की। इस वर्कशॉप में आयुर्वेदिक सलाहकार, चिकित्सक, योग शिक्षक और चिकित्सा से जुड़े पेशेवर लोगों ने हिस्सा लिया। इसमें त्वचा की बीमारियों और मानसिक बीमारियों के नियंत्रण पर व्याख्यान दिए गए। लोगों की रुचि को देखते हुए जीवा ने यह फैसला लिया है कि जापान के कई अलग-अलग शहरों में भी ज्य़ादा से ज्य़ादा वर्कशॉप आयोजित की जाएंगी।

डॉ. चौहान जापान के प्रसिद्ध खानसामा अकीरा वातानबे से भी मिले, जो भारतीय पाक कला में पारंगत है। इन दोनों ने कुछ साल पहले आयुर्वेदिक पाक कला पर भी मिलकर एक वर्कशॉप आयोजित की थी। इस मुलाकात में आयुर्वेद के प्रसार की थीम ‘भोजन और दवाएँ’ पर चर्चा हुई थी। डॉ. चौहान की मुलाकात जापान में अशोक फाउंडेशन के चेयरपर्सन से भी हुई, और जापानी युवाओं की आयुर्वेद से मदद कैसे की जाए इस पर बात हुई। भारत से जीवनपर्यंत अशोक सदस्य डॉ. प्रताप चौहान संगठन के जरिए लोगों की मदद करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। अशोक सदस्य और केयर प्रो कंपनी के मालिक श्री. कावागोई ताकाशी भी डॉ. चौहान से मिले और उन्हें अपने मौलिक केंद्रों में लेकर गए, जहां उन्होंने कम कीमतों पर अलग-अलग तरह के शारीरिक प्रयोग करने का प्रस्ताव रखा।

अपने दौरे पर डॉ. चौहान जापान के कई मंदिरों में भी गए और वहां उन्होंने जापानी बौद्ध धर्म और भारतीय सभ्यताओं के बीच संबंधों की खोज की। वो याकुशी न्योराय जिन्हें जापानी उपचार के देवता यानि जापानी धनवंतरी भी कहते हैं उनके मंदिर और शिन्टो मंदिर भी गए। डॉ. चौहान को टोक्यो के इस्कॉन मंदिर में भी आमंत्रित किया गया था,जहां उन्होंने शाम की आरती में हिस्सा लिया।

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