समय पर सोयें, समय पर जागें, समय पर खाओ खाना, तनाव है दीमक, इसको अपने पास कभी न लाना, योग-ध्यान को करते रहना, चाहे थोड़ा-थोड़ा, पा जाओगे अपने जीवन में, खुशियों भरा खजाना।
बचपन, यौवन, जवानी व प्रौढ़ अवस्था के बाद वृद्धावस्था का आना एक स्वाभाविक शारीरिक परिवर्तन है। इन शारीरिक परिवर्तनों के अनुसार मनुष्य की कार्यक्षमता एक सीमा तक बढ़ने के बाद कम होनी शुरू हो जाती है, जिसे रोका नहीं जा सकता। हाँ, इसकी गति को धीमा अवश्य किया जा सकता है।
आनन्दमय एवं सुखी जीवन जीने के लिये बल व धन का होना आवश्यक है। परन्तु युवा अवस्था में भविष्य के सुनहरे सपनों को साकार करने की प्रबल इच्छा ने युवा पीढ़ी को धन इकट्ठा करने में इतना व्यस्त कर दिया है कि युवा पीढ़ी स्वास्थ को नज़र-अंदाज करने के कारण तनाव, मोटापा, अस्थमा, मधुमेह, अनिद्रा, त्वचा रोग, जोड़ों के दर्द, यौन सम्बन्धी समस्यायें इत्यादि शारीरिक व मानसिक रोगों से ग्रस्त होती जा रही है।
शारीरिक क्षमता बनी रहे, यौवन बना रहे व जीवन सुखमय हो इसके लिये योगाभ्यास व संतुलित आहार से बढ़कर अच्छा रास्ता और कोई नहीं।
इस बार आसनों की श्रृंखला में हम चर्चा कर रहे हैं। ‘‘मत्स्यासन’’ की जिसके अभ्यास से रीढ़ का लचीलापन बना रहेगा और आप स्वयं को हर कार्य के लिये अधिक सक्षम महसूस करेंगे।
आसन बिछा कर, सुखासन में बैठ, श्वास सामान्य करने के बाद पद्मासन लगायें।
हाथों का सहारा ले पीठ को धीरे-धीरे पीछे की तरफ झुकाते हुये पीठ के बल लेट जायें।
हाथों से पैरों के अंगूठों को पकड़ उन्हें थोड़ा अपनी तरफ खींचते हुये पùमासन ठीक करें व घुटनों को जमीन पर अच्छी तरह टिका लें।
हाथों का सहारा लें। कंधे, पीठ ऊपर उठा गर्दन को पीछे की तरफ करते हुये सिर के अग्रभाग को ज़मीन पर टिका दें।
पैरों के अंगूठों को पकड़ लें। श्वास सामान्य लेते हुए यथाशक्ति रूकने के बाद पदमासन खोल लें व 2-3 मिनट शवासन में लेटे रहें।
श्वास सम्बन्धी रोगों के लिये लाभकारी
मेरूदण्ड को लचीला व गर्दन के कड़ेपन को दूर करता है
यौन अंगों को पुष्ट एव्म सुदृढ़ बना नपुंसकता दूर करने में सहायक।
जंघा व पेट की चर्बी को कम करता है।
गले व सर्विकल क्षेत्र के लिये अधिक प्रभावी व लाभकारी।
कब्ज़ दूर करने में सहायक।
फेफड़ों को शक्तिशाली बना कार्य क्षमता को बढ़ाता है।
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