पिजि़्हचिल कैसे किया जाता है?
इस उपचार में रोगी को एक लकड़ी के द्रोणी (लकड़ी का एक बैड जिसे विशेषतौर पर इस उपचार पद्धति के लिए तैयार किया जाता है) पर लिटाया जाता है। गर्म औषधीय तेल में लिनन के टुकड़ों को भिगोया जाता है और इन्हें निचोड़कर रोगी शरीर के ऊपर स्थिर धार गिराई जाती है। इसके साथ ही साथ दूसरे हाथ से लयबद्ध तरीके से शरीर पर मसाज की जाती है। मसाज बहुत ही धीमी और हल्के तरीके से दिया जाता है। इसके बाद सूखे तौलिए से पौंछकर या गुनगुने पानी के स्नान से शरीर का तेल साफ किया जाता है। पिजि़्हचिल अकेले या अभ्यंग के बाद भी किया जा सकता है। पिजि़्हचिल में लगभग 45 मिनट लगते हैं।
पिजि़्हचिल के लाभ
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रियूमैटिक रोगों में होने वाली जोड़ों के दर्द में अति उत्तम है।
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लकवा, मांसपेशीय और न्यूरोलोजिकल समस्याओं के लिए लाभकारी है।
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बढ़ती उम्र की गति और शरीर की झुर्रियों के आने को धीमा करता है।
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रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाता है।
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रक्त चाप और मधुमेह में लाभकारी है।
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त्वचा को मुलायम और सबल/मजबूत बनाता है।
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मस्तिष्क को शांति और आराम देता है।
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शरीर में वात की अधिकता को संतुलित करता है।
यह कैसे काम करता है
पिजि़्हचिल में तेल और गर्मी दोनों की ही विशेषताएं हैं। जब औषधीय तेल की मसाज की जाती है तब इसका हीलिंग तत्व त्वचा द्वारा सीधे शरीर में सोख लिया जाता है। मसाज से रक्त प्रवाह में वृद्धि होती है जिससे मस्तिष्क व शरीर में संतुलन बनता है। जबकि हीट थेरेपी से दर्द मंे राहत और मांसपेश्यिों में आराम मिलता है। इस उपचार से शरीर में बढ़े हुए वात दोष को संतुलन करने में मदद मिलती है। शरीर का पसीने केा बाहर निकालने के कारण पिजि़्हचिल द्वारा शरीर में स्थित आम को बाहर निकालने में मदद मिलती है। इसके द्वारा रक्त का शुद्धिकरण और रक्त संचार में बढ़ोत्तरी के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है और रोग एक किनारे हो जाते हैं।
सावधानियां
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इस पद्धति के दौरान मांसपेशियों को ढीला रखें।
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उपचार के दौरान हल्का भोजन लें।
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भारी शारीरिक और मानसिक काम से बचें ।
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मसाज के बाद स्नान लेने से पहले कम से कम 45-60 मिनट का विश्राम लें।