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सरल आसन - गुणों की खान सेतुबन्ध आसन

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योग किसी भी आयु में किया जा सकता है। इतना ही नहीं योग से आयु संबंधी समस्याओं पर भी नियंत्रण रखा जा सकता है। जानिए इस विचार को सेतुबंध आसन कैसे सिद्ध करता है। बढ़ती उम्र के साथ-साथ वृद्धावस्था तक पहुँचते-पहुँचते पाचन शक्ति का कमज़ोर होना, स्नायु प्रणाली का असंतुलित/अनियंत्रित होना, श्वास लेने में दिक्कत, विसर्जन क्रिया, रक्त्त संचार ठीक से न होना ऐसे सत्य हैं। जिनसे बच पाना असंभव नहीं तो मुश्किल आवश्यक है।

वृद्धावस्था में रक्त्त संचार ठीक रहे, हड्डियों-जोड़ों में लचक बनी रहे, पाचन क्रिया, श्वसन प्रणाली ठीक ढंग से काम करती रहे, दिल, दिमाग ठीक सुचारू रूप से काम करते रहें इन सब के लिये प्रतिदिन आवश्यक है कि इंसान अपने बहुमूल्य जीवन के कुछ क्षण योग को ज़रूर समर्पित करे।

योग में बहुत आसन हैं जिन्हें सहजता व क्षमतानुसार किये जाने से जीवन सुखमय बनाया जा सकता है।

हम आज जिस आसन के बारे में बताने जा रहे हैं उसका नाम है ‘‘सेतुबन्ध’’। संस्कृत के शब्द सेतु का हिन्दी अर्थ है ‘‘पुल’’ व बन्ध का अर्थ जोड़ना-बान्धना। जिस प्रकार पुल के माध्यम से कठिन रास्तों को पार किया जा सकता है। ठीक उसी तरह सेतु बन्ध आसन भी हमें कई प्रकार की शारीरिक व मानसिक कठिनाईयों से आसानी से पार करा देता है।

आसन एवं गुणकारी सेतुबन्धासन हर उम्र के स्त्री - पुरुष के लिये लाभकारी है। विधिः-

  • समतल भूमि पर चद्दर या मैट बिछा पीठ के बल लेट जायें।

  • बाज़ु सीधी कमर के पास, हथेलियाँ ज़मीन मी तरफ व अंगुलियाँ पैरों की ओर रखें।

  • दोनों घुटनों को मोड़ते हुये पैरों को नितम्बों के बराबर फासला बनाये रखें।

  • हाथों को ज़मीन की तरफ हल्का दबाते हुये नितम्ब, कमर व पीठ को यथाशक्ति ऊपर की तरफ उठायें।

  • इस स्थिति में आधा मिनट से एक मिनट तक रुकें व श्वास छोड़ते हुये धीरे-धीरे वापिस आयें। इस क्रम को 5 बार दोहरायें व तत्पश्चात् कुछ देर शवासन करें।

लाभः-

  • रक्त्त संचार बेहतर होता है।

  • सिर दर्द व कमर दर्द के लिये उत्तम, तनाव एवं अनिद्रा दूर करने में उपयोगी।

  • पाचन शक्ति बढ़ाता है।

  • मस्तिष्क शान्त रहता है।

  • मेरूदण्ड की लचक बढ़ती व मांसपेशियाँ सक्रिय होती हैं।

  • फेफड़ों, थाइरायड ग्रन्थि को प्रभावित कर उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाता है।

  • छाती, गर्दन व नितम्बों की जकड़न दूर करता है।

  • जंघाओं को सशक्त्त करता है।

सावधानियाँः-

  • पैरों व घुटनों में फासला व समानता बनायें रखें।

  • पैरों को ज़मीन पर पूरी तरह टिकाते हुये घुटने तक के हिस्से को सीधा रखें।

  • छाती को ठुड्डी की तरफ लायें न कि ठुड्डी को छाती की तरफ।

  • गर्दन को ज़मीन से न लगने दें।

विशेषः-

  • मासिक धर्म के दिनों में व गर्भवती महिलायें इसका अभ्यास न करें।

  • अगर कमर या गर्दन दुर्घटना ग्रस्त है तो इस आसन को न करें।

नोटः-

  • शारीरिक समस्या के चलते अपने डॉक्टर से परामर्श के बाद ही योग्य शिक्षक की देख रेख में योगाभ्यास करें।

To Know more , talk to a Jiva doctor. Dial 0129-4264323 or click on Our Doctors.

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