स्वेदन के लाभः
स्वेदन के अनेक लाभ हैं। यह विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालता है, तनाव दूर करता है, त्वचा को चमकदार एवं वजन को कम करने में सहायक है। यह जोड़ों को स्वस्थ करता है व रक्त परिसंचरण बढ़ाता है।
स्वेदन करने के कुछ तरीकेः
आयुर्वेद के अनुसार, स्वेदन के कई तरीके होते हैं।
नाड़ी स्वेदन-
इसके लिए हर्बल काढ़े के भाप का उपयोग किया जाता है। इसके लिए विशेष नाड़ी स्वेदन यंत्र का प्रयोग किया जाता है। भाप शरीर में संचित अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालता है और वात के शीत गुणों को बेअसर करके मांसपेशियों व जोड़ों के दर्द को कम करता है। शरीर के अंगों को उतनी ही भाप दें जितने से वे जले नहीं।
बालुका स्वेदन-
यह गर्म रेत की पोटली से शरीर को शुष्क ताप देकर दर्द को कम करने की प्रक्रिया है। यह संचित आम को द्रवीभूत करके प्रभावित स्थान को आराम देता है। पोटली के उपयोग से पहले उसे अपनी हथेली पर रखकर तापमान की जांच कर लें।
पत्र-पोटली स्वेदन-
जोड़ों के दर्द एवं मांशपेशियों में अकड़ाहट से छुटकारा पाने का यह एक आदर्श तरीका है। इस स्वेदन के लिए अनेक प्रकार के ताजे पत्तों एवं सूखी जड़ी-बूटियों का मिश्रण बनाते हैं। इस मिश्रण को तिल के तेल में डालकर फ्राई करके इसको एक सूती कपड़े के टुकड़े में डालकर पोटली बनाते हैं। पोटली को गरम तेल में डुबोकर अपनी हथेली पर रखकर पोटली के तापमान की जांच करके 7-10 मिनट तक प्रभावित स्थान पर मालिश करते हैं।
वाष्प स्नान-
एक विशेष यंत्र में रोगी को लिटाकर या बैठाकर उसमें औषधि युक्त भाप छोड़ा जाता है। रोगी के सिर को यंत्र से बाहर रखा जाता है।
गर्म पानी से स्नान-
गर्म पानी से स्नान करने से हमारा शरीर पानी में मौजूद विभिन्न पोषक तत्वों और खनिजों को अच्छी तरह से अवशोषित कर लेता है। इससे विषाक्त पदार्थों को दूर करने में सहायता मिलती है। यह सबसे आसान तरीका है जिसे आप स्वयं अपने घर पर भी कर सकते हैं। इसके लिए एक टब में गर्म पानी भरें और उसमें अपने शरीर के सिर से नीचे के हिस्से को 10 मिनट तक डुबाये रखें।
हालांकि, स्वेदन विषाक्त पदार्थों को निष्कासित करने का अच्छा तरीका है, परन्तु गर्भवती स्त्रियों, हृदय रोगियों तथा रक्त विकार से पीडि़त व्यक्तियों के लिए यह हानिकारक हो सकता है। यदि आपको ऐसी कोई समस्या न हो और स्वस्थ हों, तो स्वेदन से आप स्वयं को तरोताजा करके अपने मन व शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं। आयुर्वेद में स्वेदन क्रिया पंचकर्म चिकित्सा का ही एक पूर्वकर्म है और इसे आयुर्वेद चिकित्सक की देखरेख में ही करना उचित है।