परिचय
‘थालापोथिचिल’ दक्षिण भारत में प्रयोग की जाने वाली एक चिकित्सा विधि है जिसमें विशेष विधि से तैयार औषधयुक्त लेप सिर पर लगाया जाता है। ‘थाला’ शब्द का अर्थ सिर व ‘पोथिचिल‘ का अर्थ ढकना होता है। केरल का यह पारम्परिक आयुर्वेदिक उपचार कई तरह की मनो-दैहिक बीमारियों में काफी कारगर असर देता है। इस चिकित्सा विधि का शीत, शामक व शान्त प्रभाव होता है।
सामग्री (घटक द्रव्य)
इस चिकित्सा विधि में पेस्ट (लेप) बनाने के लिए आंवला चूर्ण, छाछ व मिट्टी का बर्तन, काम में लिया जाता है। लेप को ढकने के लिए कमल या केले के पत्ते का उपयोग किया जाता है। सिर की मालिश के लिए रोगानुसार औषधयुक्त तैल की आवश्यकता होती है।
थालापोथिचिल की विधि
व्यक्ति को आरामदायक स्थिति में आसन पर सीधा बैठाया जाता है। विशेष औषध-तैल से सिर की धीर-धीरे मालिश की जाती है। रोग व रोगी की सावधानी पूर्वक परीक्षा कर ताजा तैयार किया लेप आधे से एक सेंटीमीटर की मोटाई में सिर की त्वचा पर लगाया जाता है। लेप तैयार करने के लिए आंवला चूर्ण को छाछ में रातभर मिट्टी के बर्तन में भिगोकर रखा जाता है। सुबह इसको पीसकर ताजा काम में लिया जाता है। सिर पर लेप लगाने के बाद इसे केले की पत्तियों से ढ़का जाता है।
इसे लगभग 30 से 45 मिनट रखने के बाद लेप को हटाकर सिर की मालिश की जाती है।
लाभ
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थालापोथिचिल बालों के रोग जैसे बाल गिरना, सफेद होना, डेन्ड्रफ, संक्रमण इत्यादि में उपयोगी है।
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वात विकार जैसे अनिद्रा, अवसाद,
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तनाव, भ्रम, बैचेनी, सिर का भारीपन इत्यादि रोगों में प्रभावी है।
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सिर दर्द, गर्मी महसूस होना, रक्तदाब विकृति, मानसिक दौर्बल्य जैसे रोगों में लाभदायक है।
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बालों को सुन्दर, घना, चमकीला व रेशमी बनाए रखने में उपयुक्त है।
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यह पित्त व वात दोष सम्बन्धी रोगो में लाभकारी है।