चाहे सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक का हो या फिर बदलते हुए मौसम का मामला, सेहतमंद ज़िंदगी के लिए आयुर्वेद में विस्तार से दिशानिर्देश दिए गए हैं। इन्हें दिनचर्या, रात्रिचर्या और ऋतुचर्या कहा जाता है। इस लेख में हम दिनचर्या और रात्रिचर्या के बारे में विस्तार से बताएंगे
आयुर्वेद में यह तरीके शरीर के दोषों को संतुलित करने और शरीर की साफ़-सफ़ाई के लिए बनाए गए हैं। यह दिन, रात और ऋतुओं के हिसाब से बदलते रहते हैं। पहली नज़र में यह दिशानिर्देश समय खराब करने वाले, मुश्किल और घिसे पिटे लग सकते हैं लेकिन आपकी सेहत को ध्यान में रखकर इसे वैज्ञानिक तरीके से बनाया गया है। इन दिशानिर्देशों के जरिए ये पक्का किया गया है कि इससे आपका शरीर और मन पूरी तरह से साफ़ रहे, त्रिदोषों में संतुलन बने, आप अंदर से संतुलित रहें और आपका तनाव कम हो। एक बार दिन और रात के इन नियमों का पालन शुरु हो जाता है तो यह ज़िंदगी का हिस्सा बन जाते हैं और इनका पालन आसान हो जाता है। ये तरीके सिर्फ़ नियम भर नहीं है बल्कि सेहतमंद ज़िंदगी पाने के लिए रोज़ किए जाने वाले व्यावहारिक दिशानिर्देश हैं।
दिनचर्या:
आयुर्वेद कहता है कि अच्छी सेहत हासिल करने के लिए हमें अपने शरीर को बदलते मौसम के हिसाब से ढालना चाहिए, जिसके बदले में शरीर की दूसरी कई चीज़ें अपने आप नियंत्रित हो जाती है। हर दिन प्रकृति में दो बदलाव दिखाई देते हैं जिसमें किसी एक दोष जैसे वात, पित्त या कफ का प्रभाव नज़र आता है।
इन बदलावों का वक्त लगभग इस तरह होता है:
पहला बदलाव:
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सुबह 6 बजे से 10 बजे तक - कफ
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सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक - पित्त
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दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक - वात
दूसरा बदलाव:
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शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक - कफ
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रात 10 बजे से सुबह 2 बजे तक - पित्त
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सुबह 2 बजे से 6 बजे तक - वात
दिन की शुरुआत:
सेहतमंद और आदर्श प्रदर्शन के लिए व्यक्ति को सूरज निकलने से दो घंटे पहले उठना चाहिए। इस वक्त प्रकृति में वात तत्व ताकतवर होता है। इस काल को संस्कृत में ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है। इस वक्त सोकर उठने से वात के अच्छे गुणों का फ़ायदा लेने में मदद मिलती है साथ ही यह आपके विचार और फेफड़ों को भी शुद्ध करने में मदद करता है। यह दिन का वो वक्त होता है जब वातावरण में सबसे ज्य़ादा शुद्धता होती है। सोकर उठने के बाद एक गिलास पानी ज़रूर पिएं जिससे आपको मलत्याग में मदद मिलेगी। शरीर में विषैले पदार्थों को जमने से रोकने के लिए आपको अपना मूत्राशय और मलाशय जितनी जल्दी हो सके खाली करना चाहिए। शौच और मूत्र को रोकना गंभीर स्थिति ला सकता है।
इसके बाद अपने चेहरे को पानी से धोएँ। फिर मुँह में पानी भरें और इसे 30 सेकेंड तक रोके रखें इस दौरान पानी को मुंह में रखकर अपनी खुली हुई आँखों में पानी के छींटें मारिए। इसके बाद कुल्ला कर लें और आँखों को बंद कर लें।फिर अपनी पलकों पर हथेलियों से एक मिनट तक हल्की मालिश करिए। यह आपके सिर में पित्त का संतुलन बनाने में मदद करती है। इसके बाद अपने मुँह को साफ करने के लिए दांतों को ब्रश कीजिए और अपनी जीभ को भी साफ़ कीजिए। आयुर्वेद मानता है कि जीभ पर चढ़ी परत मलाशय में जमा विषैले तत्वों का संकेत है। बाद में गुनगुने पानी से दो से तीन बार गरारा ज़रूर करें।
इसके बाद 15-20 मिनट तक सामान्य कसरत करें। योग, तेज़ कदमों से टहलना और मांसपेशियों में खिंचाव लाने वाली कसरतें बहुत फ़ायदेमंद हैं। प्राणायाम और सूर्य नमस्कार करें तो बहुत ही अच्छा है। कसरत के बाद अभ्यंग या शरीर पर तेल से मालिश करें। इसमें आप तिल या सरसों के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। गर्मियों में नारियल का तेल भी इस्तेमाल किया जा सकता है। मालिश बहुत देर तक ना करें। सिर, माथे, कनपटी, हाथ और पैर में 5 मिनट की मालिश काफ़ी रहती है।
कसरत के बाद शरीर में लगी गंदगी और तेल को साफ़ करने के लिए नहाएं। आप नहाने में शावर, बाथटब या बाल्टी का इस्तेमाल कर सकते हैं। नहाने के बाद कुछ मिनटों तक ध्यान ज़रूर लगाएँ। यह दिनचर्या की सबसे ज़रूरी बात है। एक जगह पर शांति से बैठ जाएं। आप किसी मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। अपने दिन की शुरुआत गर्म, पौष्टिक और बढ़िया नाश्ते से कीजिए।
काम के घंटे:
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लंबे काम के घंटों के बीच जब भी मौका मिले आराम करें। कुर्सी पर टेक लगाकर आंखों को बंद कीजिए और अपने दिमाग को 2-3 मिनट तक आराम देना बड़ा बदलाव लाता है।
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आँखों को बंद कीजिए और 5 मिनट तक अपनी सांसों पर ध्यान दीजिए। पेट तक लंबी सांसें लेना आराम और नई ऊर्जा देता है
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अपने काम करने की जगह पर आप अच्छे सहयोगी बनें, सकारात्मक और दोस्ती वाला माहौल बनाएं इससे तनाव और थकान दूर होगें।
दोपहर का खाना:
दोपहर का खाना 12 से 1 बजे के बीच खाना चाहिए। इस वक्त में पित्त काल शिखर पर होता है। पित्त पाचन के लिए जिम्मेदार होता है। आयुर्वेद कहता है कि दोपहर का खाना दिन का सबसे बेहतर खाना होना चाहिए। खाने के बाद हल्की सैर अच्छी रहेगी, कुछ सौ कदम चलना खाना पचाने में मददगार होता है।
दिन को खत्म करना:
जब आप शाम को घर लौटते हैं तो कम से कम 5 मिनट आराम करें। अगर आपका परिवार है तो उनसे बात करने या उनके साथ खेलने से दिनभर का तनाव और दबाव कम हो जाता है। अगर आप थका हुआ महसूस कर रहे हैं तो नहा लें और सिर में हल्की मालिश करा लें। यह मालिश चाहें तो तेल से करवाएँ या फिर बिना तेल के।
रात का खाना जल्दी खाने की कोशिश करें, हो सके तो सूरज डूबने से पहले खा लें या फिर सोने से दो घंटे पहले तक तो हर हालत में खाना खा लें। रात के खाने में ऐसा आहार लें जो हल्का और आसानी से पचने वाला हो। रात में तला हुआ, ठंडा, दूध से बनी चीज़ें और मिठाई खाने से बचें। एक आदर्श आहार में सलाद, उबली हुई या भाप में पकी सब्जियाँ, सब्जियों का सूप और रोटी होनी चाहिए। रात में जल्दी सोना अच्छा है। रात 10 बजे तक या ज्य़ादा से ज्य़ादा 11 बजे तक सोने की कोशिश करें।