जिन बातों को आयुर्वेद ने हज़ारों साल पहले कहा उस पर विज्ञान अब यकीन करने लगा है। आयुर्वेद इस सच्चाई से इनकार नहीं करता कि मन का हमारे शरीर, आध्यात्मिक अनुभव और संपूर्ण जीवन पर गहरा असर पड़ता है। मन, शरीर और आत्मा एक दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं।
जब एक पर असर पड़ता है तो बाकियों को भी परेशानी होती है। यह अवधारणा है कि जब बात उपचार की हो तो सेहतमंद मन उस पर सकारात्मक असर डालता है और अस्वस्थ मन बीमारी को बढ़ाता है। क्वॉटम हीलिंग सेंटर के डायरेक्टर और मशहूर लेखक डॉक्टर ब्रायन शीन ने विस्तार से जानकारी दी है कि ऐसे विचार और भावनाएँ जिनको छिपाया गया हो उन्होंने थायरॉयड को कम किया। उन्होंने इस बात को स्थापित किया कि उपचार के मामले में दवाओं से ज्य़ादा मन के आध्यात्मिक पहलुओं का असर पड़ता है।
इसने आयुर्वेद के उस नजरिए पर ठप्पा लगाय जिसमें कहा जाता रहा है कि चिंता, गुस्सा, ईर्ष्या, नफ़रत, कमज़ोर इच्छाशक्ति, दुश्मनी, दुष्टता, चिड़चिड़ाहट, नाराज़गी, अपराधबोध, अवसाद, बेचैनी, आनंद की कमी और कई दूसरी नकारात्मक भावनाएँ और विचार शरीर पर बुरा असर डालते हैं, जिससे बीमार होने का खतरा बढ़ता है। वैज्ञानिक सबूतों ने यह साबित भी किया है कि कई बीमारियाँ ऐसी हैं जिनकी जड़ें मन से जुड़ी हुई हैं।
नामचीन चिकित्सक माइकल लॉन्गो ओ’डोनेल ने कहा ‘स्वास्थ्य की देखभाल वाले मेरे 38 साल के करियर में मैंने देखा है कि विचारों, व्यवहार, विश्वास और उम्मीद में निश्चित तौर पर संबंध है, जिसे मेरे मरीजों ने जहन रखा और उससे हमें उनकी सेहत को ठीक करने में काफी मदद मिली। उदाहरण के तौर पर देखें तो जहाँ डर या गुस्सा, पुरानी कड़वाहट, किसी की असफलताओं और कमियों की आलोचना की आदत पाई जाती है वहाँ आमतौर पर कम या कोई प्रगति नहीं होती है।
डॉक्टर ओ’डोनेल ने अपने एक कथन के जरिए दार्शनिक अंदाज में टिप्पणी करते हुए कहा ‘हमें अपने शरीर को पहाड़ी शहर की तरह देखना चाहिए। हमारा मन शहर की बाहरी दीवारों की तरह है। हमारी आत्मा जो हमारी चेतना में रहती है वह एक दरबान की तरह है। हम ही तय करते हैं कि दरवाजों से कौन से विचार अंदर प्रवेश करेंगे। हमें सभी विचारों को गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं है। हम कभी भी नहीं चाहेंगे कि कोई बलात्कारी, चोर या क़ातिल हमारे घर में आसानी से घुस जाए। मगर फिर भी हम समान रूप से विनाशकारी विचारों को मन में आने देते हैं।‘
‘योर बॉडी बिलीव्स एवरी वर्ड यू से’ की लेखिका बारबरा एच. लेविन कहती हैं कि ‘आपके विचार, डर और भावनाएँ अक्सर पता लगाने योग्य शारीरिक परिस्थितियाँ पैदा करती हैं, हालाँकि आप कभी भी इसके संबंध या इसको नियंत्रित करने को लेकर सतर्क नहीं रहते हैं, लेकिन इस खोज का प्रभाव चौंकाने वाला होता है।
वह कहती हैं ‘अगर आप बीमारी से ग्रस्त हो सकते हैं तो आपके पास उसे बदलने की यहां तक कि ठीक करने की भी शक्ति है। बीमारियाँ अक्सर लोगों के अंदर नकारात्मक सोच, बुरा व्यवहार और कमजोर भावनाएँ लाती हैं। आप अपने मन की शक्ति से अपने शरीर के तत्वों पर नियंत्रण करते हैं। पॉली फार्मेसी की मदद से आपके दिमाग में 50 से ज्यादा हार्मोन्स बनते हैं जो शरीर के अलग-अलग अंगों पर प्रभाव डालते हैं, आपका दिमाग इन तत्वों पर असर डालता है। जो कुछ भी इन हार्मोन्स के बनने या फैलने में बाधा डालते हैं वही आपके शरीर पर भी असर करते हैं।‘
हार्मोन्स की इस प्रतिक्रिया का असर सीधे तौर पर कोरोनरी धमनी रोग और तनाव के बीच के संबंध को दिखाता है। यह संबंध पहले से ही स्थापित है और अनुसंधान के विषय के तौर पर जारी है। शायद यही कारण है कि इसमें कोई शक नहीं कि दिल के दौरे के सबसे अधिक मामलों में भावनात्मक रूप से घटी घटनाएँ शामिल होती हैं खासतौर से इसमें गुस्सा शामिल है। वैज्ञानिक तथ्य इस विचार से सहमत है कि ऐसे लोग जो भावनात्मक रूप से जल्दी परेशान हो जाते हैं उनमें आर्टिरियोसक्लेरोसिस या धमनियों का सख्त होना पाया जाता है। तनाव को अगर गहराई से समझा जाए तो यह भटकी हुई, नकारात्मक प्रतिक्रिया है, जो आपके अंदर मौजूद है, यह आपको तनाव की ओर ले जाती है जो कि एक बाहरी इकाई है। प्रतिक्रिया सिवाए विचार के कुछ भी नहीं और विचार मन की कल्पना के अलावा कुछ नहीं है। एक से निपटने के लिए दूसरे को रोकना ज़रूरी है। हालाँकि यह इंद्रियों के हिसाब से अरुचिकर लगता है, लेकिन यह मन को अनुशासित और आज्ञाकारी बनाता है। वैसे इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपनी भावनाएँ रोक दें, इससे तो दबी हुई इच्छाओं का एक नया उलझा हुआ जाल बन जाएगा।
सर्दियों में तेल, वसा, ताज़े दूध से बने उत्पाद जैसे दही और पनीर, मीठा, खट्टा और नमकीन भोजन खाया जाता है । चूंकि बाहरी वातावरण ठंडा होता है इसलिए शरीर अपनी गर्मी को अंदर ही रोककर रखता है। इसके प्रभाव से पाचन की अग्नि यानि जठराग्नि ज्य़ादा ताकतवर और गरिष्ठ भोजन जैसे वसा और दूध से बने उत्पाद को पचाने में सक्षम होती है। राजमा, उड़द दाल, अनाज और अनाज से बने उत्पाद खासकर हर्बल वाइन और शहद खाया जा सकता है। सर्दियों में गर्म पानी या अदरक की चाय भी पी सकते हैं।
आयुर्वेद भोजन के 6 स्वाद की सलाह देता है- मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा, कसैला और तेज। मीठा, खट्टा और नमकीन आहार खासतौर से ठंडी और सूखी सर्दियों के मौसम में फ़ायदेमंद रहता है। कसैले और मसालेदार भोजन से बचना चाहिए क्योंकि यह शरीर में रूखापन बढ़ाता है।
ठंडा पानी, आइसक्रीम और बर्फ में जमा भोजन और पेय ना लें। भूख से अधिक ना खाएं इसका ध्यान रखें। सर्दियों में कम भोजन करने से वात दोष बिगड़ता है।
ठंडे और गीले वातावरण में प्राकृतिक रूप से कफ़ इकट्ठा होता है, इसलिए खुद को गर्म रखने की कोशिश करनी चाहिए। ठंडे मौसम में वात दोष भी बढ़ता है। गर्म पानी और भाप से नहाना, धूप सेंकना और गर्म कमरों में रहना फायदेमंद रहेगा। भारी, गर्म, सूखे कपड़े पहनने चाहिए। शरीर और सिर की मालिश करवाना ठीक रहेगा, सिर की सूखी मालिश करें लेकिन वात बढ़ा हुआ हो तो हल्का गर्म तेल जैसे तिल का तेल, सरसों का तेल या जैतून के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
तेल से मालिश करने से सूखापन दूर होता है और शरीर को नमी मिलती है। सुबह नहाने के बाद प्राकृतिक मॉइश्चराइज़र भी लगा सकते हैं।
हेमंत और शिशिर ऋतु दोनों ही एक तरह से सर्दियों का मौसम है। दोनों को एक मानकर इस समय को शीत काल कहा गया। शिशिर को आदान काल यानि निर्जलीकरण का समय कहा जाता है। ठंड प्रचंड हो जाती है और रूखापन बढ़ जाता है। इस मौसम में कभी-कभी बादल, हवा और बारिश भी होती है। हेमंत ऋतु का रहन-सहन और खानपान शिशिर में भी जारी रखना चाहिए। ठंडा भोजन, पेय और वात को बढ़ाने वाला आहार जैसे कसैला, कड़वा और तेज़ स्वाद वाले भोजनों से बचना चाहिए।
भारत की भौगोलिक स्थिति की वजह से सूर्य की किरणों का खास असर उस पर होता है, इसके पीछे वजह यह है कि भारत में 6 मौसम आते हैं। मौसमों और महीनों का जो उल्लेख यहां किया गया है वह भारत के लिए है, महीने और मौसम बाकी हिस्सों में अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन आप अपने इलाके के मौसम के हिसाब से भी इसका अनुसरण कर सकते हैं।
आयुर्वेद के मुताबिक जो सटीक वर्गीकरण किया जाता है वह चंद्र कैलेंडर के हिसाब होता है। ऊपर बताए गए सौर महीने, चंद्र महीनों से मेल बिल्कुल नहीं खाते लेकिन उसे चंद्र महीनों से मिलता-जुलता माना जाता है। उदाहरण के लिए, जब भारत में सर्दियां होती हैं यानि दिसंबर-जनवरी का महीना होता है, उस समय ऑस्ट्रेलिया में गर्मियां पड़ती हैं, तो जो लोग वहां रहते हैं उनको गर्मियों वाला रहन-सहन और खानपान अपनाना चाहिए न कि सर्दियों वाला।
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