फैशन की मार ने आज साइज जीरो को स्टाइलिश हीरो बना दिया है। इसके साथ ही बढ़ते वजन पर प्रचार-प्रसार ने भी दुबलेपन की समस्या को कहीं गुम कर दिया है।
लक्षण:
यूं तो दुर्बलता का कोई मापदंड नहीं है, लेकिन नीचे दिए गए लक्षणों के आधार पर दुबलेपन को परिभाषित किया जा सकता है।
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शरीर पर हड्डियों का नज़र आना
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प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाना
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नितंब, छाती व पेट की निचले हिस्से पर वसा का न होना
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लंबाई के अनुपात में वजन कम होना
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चेहरा पतला व धँसा हुआ नज़र आना
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थकानध्चिड़चिड़ापनध्हताश रहना
कारण:
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आनुवांशिकता
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खाने-पीने में लापरवाही
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हार्मोन्स असंतुलित होना
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पाचन-क्रिया का बिगड़ना
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मानसिक चिंता
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अत्यधिक व्यायाम
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पेट में कीड़े
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हाइपर थायरॉइड या मधुमेह रोग लग जाना
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एनीमिया
आयुर्वेदिक नज़रिया:
आयुर्वेद में अत्यंत मोटे तथा दुबले शरीर वाले व्यक्तियों को निंदित व्यक्तियों की श्रेणी में गिना जाता है। दुबलेपन की समस्या को कृशता कहते हैं। अत्यंत कृश होने पर शरीर की स्वाभाविक कार्य प्रणाली का सम्यक रूप से निर्वहन नहीं होता जिसके फलस्वरूप दुबले व्यक्तियों को अनेक बीमारियों से ग्रसित होने का भय तथा जल्द मृत्यु की संभावना बनी रहती है।
दरअसल अग्निमांद्य या जठराग्नि का मंद होना ही अतिकृशता का प्रमुख कारण है। अग्नि के मंद होने से व्यक्ति अल्प मात्रा में भोजन करता है, जिससे आहार रस या रस धातु का निर्माण भी अल्प मात्रा में होता है। इस कारण आगे बनने वाले अन्य धातु (रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्रधातु) भी पोषणाभाव से अत्यंत अल्प मात्रा में रह जाते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति निरंतर कृश से अतिकृश होता जाता है। इसके अतिरिक्त लंघन, अल्प मात्रा में भोजन तथा रूखे अन्नपान का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से भी शरीर की धातुओं का पोषण नहीं होता।
यौन जीवन पर प्रभाव- यौन जीवन के लिए ज़रूरी ऊर्जा, उत्साह, सहनशीलता व अन्य चीजों को शुक्र धातु उत्पन्न करता है लेकिन कृशता के कारण शुक्र धातु को भी पूर्ण पोषण नहीं मिल पाता है जिसके चलते यौन जीवन प्रभावित हो जाता है। इसके साथ ही दुबलेपन के कारण व्यक्ति थक भी जल्दी जाता है जिससे मांसपेशियां खिचने लग जाती हैं और व्यक्ति बड़ी ही आसानी से बिस्तर पर थक जाता है।
उचित समाधान:
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कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट्स युक्त आहार
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ड्राई फ्रूट्स
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दूध और घी
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अश्वगंधा और शतावरी
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पंचकर्म
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दूध के साथ केला
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व्यायाम
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योगा - प्राणायाम
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तिल तेल से नियमित मालिश