हर व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चाहता है, खुश रहना चाहता है, सुखी रहना चाहता है। परन्तु भौतिक पदार्थों के प्रति अधिक लगाव और प्रकृति से बढ़ती दूरी के कारण उसका जीवन दिन प्रतिदिन नई-नई व्याधियों से घिरता चला जा रहा है।
खराब दिनचर्या, अंसतुलित खाने की आदत या फिर बाहरी वातावरण भी कुछ ऐसे कारण हैं। जिनकी वजह से शरीर में वात्, पित्त, कफ का संतुलन बिगड़ जाता है और सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
सर्दी के दिनों में दूध से बने पदार्थ, घी-मेवों से बनी चीजें, मिठाई इत्यादि खाने और अधिक निद्रा, आलस्य, शारीरिक श्रम या फिर व्यायाम न करने के कारण कफ दोष का असंतुतिल होना स्वाभाविक है।
शारीरिक संतुलन न बिगड़े और सर्दी के प्रकोप से भी बचे रहें इसके लिये आवश्यक है कि प्रतिदिन कुछ समय योगाभ्यास के लिये आवश्य निकाला जाये।
सर्दी-ज़ुकाम से बचने व शारीरिक क्षमता बनाये रखने के लिये ताड़ासन, वीरभद्रासन, जानुसिरासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, उष्ट्रासन, सेतुबन्धासन, सर्वांगासन, हलासन, भुजंगासन, सूर्य नमस्कार काफी लाभदायक हैं।
जिस आसन के बारे में आप को बताया जा रहा है उसका नाम है - उष्ट्रासन
विधि -
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घुटने मोड़ते हुय वज्रासन में बैठ जायें।
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घुटनों और एड़ियों के बीच लगभग 10-15 बउ का फासला रख घुटनों पर खड़े हो जायें।
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दायें हाथ को दाईं तरफ व बायें हाथ को बाईं तरफ कमर पर इस तरह से रखें कि हाथों की उंगलियां सामने व अँगूठा पीछे की तरफ रहे।
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श्वास भरते हुये कमर से ऊपरी भाग व सिर को धीरे-धीरे पीछे की तरफ ले जायें व श्वास सामान्य कर इस स्थिति में लगभग 10 सैकेण्ड तक रूकने के बाद धीरे-धीरे वापिस वज्रासन में बैठ जायें।
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कुछ दिनों के अभ्यास के बाद हाथों को पिण्डलियों व ऐड़ी के पास ले जायें और परिपक्वता के बाद हथेलियों को तलवों पर रख अभ्यास करें।
लाभः
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पसलियों को मजबूत व फेफड़ों को स्वस्थ बनाता है।
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गर्दन, पीठ व कमर के हिस्से प्रभावित होते हैं और रीड़ की हड्डी लचीली होती है।
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मधुमेह के रोगियों के लिये लाभकारी।
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शारीरिक दुर्बलता दूर होती है।
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बच्चों के शारीरिक विकास, कद बढ़ना, आँखों की रोशनी।