कितनी सुन्दर बात कही गई है ‘‘पहला सुख निरोगी काया‘‘। बिल्कुल सत्य। धन दौलत मान-सम्मान, वैभव, शोहरत, बंग्ला- गाड़ी, सब तभी अच्छे लगते हैं जब शरीर स्वस्थ हो। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अगर ये कहा जाए कि ‘‘आयुर्वेद अपनाना होगा, योग शरण में आना होगा‘‘ तो अतिश्योक्ति न होगी।
आयुर्वेद हमें आहार-विहार के बारें में जानकारी देता है और योग तन-मन को स्वस्थ व शान्त रखना सिखाता है। योग व आयुर्वेद को दिनचर्या का अभिन्न अंग बना जीवन यात्रा को और अधिक कारगर व सुखमय बनाया जा सकता है। शरीर निरोगी हो, त्वचा मुलायम, कान्तिमय हो, इसके लिए पाचन व निष्कासन तन्त्र को ठीक रखना अति आवश्यक है व इन्हें चुस्त-दुरूस्त रखने के लिए योगाभ्यास सस्ता व अच्छा माध्यम है।
योगाभ्यास की श्रृंखला में आज हम आप को ‘‘योग मुद्रा‘‘ के बारे में बताने जा रहे हैं। इसे नियमित व ठीक ढंग से कर आप अपने शरीर व त्वचा को स्वस्थ रख सकते हैं।
विधि:
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स्वच्छ, समतल व हवादार जगह पर आसन बिछा पद्मासन लगा बैठ जाएं।
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कमर, पीठ व गर्दन को सीधा करें ।
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दोनों बाजुओं को कमर के पीछे ले जाएं।
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दाएं हाथ से ज्ञान मुद्रा (तर्जनी व अंगुष्ठ के अग्रभाग को मिलाना) लगा, दायें हाथ की कलाई को बायें हाथ से पकड़ लें।
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चार-पाँच लम्बे गहरे श्वास लें व श्वास छोड़ते हुए कमर से धीरे-धीरे आगे की तरफ झुकें व पेट, छाती, गर्दन को सीधा रखते हुए माथा ज़मीन पर टिका दें।
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यथाशक्ति रुकने के बाद श्वास भरते हुए वापिस आ जाएं।
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अब पैरों की पोजि़शन बदल इसी क्रम से दोहराएं।
आसन के लाभ:
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मेरुदण्ड व नाड़ी तन्त्र स्वस्थ रहता है।
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फेफड़े मज़बूत बनते हैं।
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रक्त संचार ठीक रहता है।
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मल निष्कासन सहज हो जाता है।
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शुक्र दौर्बल्यता दूर होती है।
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कब्ज़ का निवारण होता है।
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लगातार अभ्यास शरीर को लचीला व चेहरे को कान्तिमय बनाता है।
सावधानियाँ:
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उच्च रक्तचाप रोगी इसे न करें।
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गर्भवती महिलाएं इसे न करें।
मन शान्त, आत्मा पवित्र बना के रखें महान चरित्र ‘‘योग‘‘ सब से अच्छा मित्र
विशेष सावधानियाँ:
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आगे झुकते व वापिस आते समय हाथों को कमर के पीछे शरीर से लगाकर रखें।
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किसी भी बीमारी के चलते योगाभ्यास शुरू करने से पूर्व अपने डॉक्टर से अवश्य परामर्श करें व शिक्षित शिक्षक की देखरेख में ही अभ्यास करें।