सामान्यतः
शरीर में श्वास द्वारा वायु अंदर ले जाना और बाहर छोड़ना ही प्राणायाम समझा जाता है। परन्तु ऐसा नही हैं, प्राणायाम संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है, प्राण और आयाम। जिसका अर्थ है - प्राण और विस्तार यानि प्राणशक्ति का विस्तार। अब हम प्राण शक्ति का विस्तार करने वाले प्राणायाम अनुलोम - विलोम को करने की विधि, लाभ तथा सावधानियों के बारे में संक्षेप में बात करेगें।
विधि :-
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शान्त चित्त हो पद्मासन, सुखासन, वज्रासन या जिस भी आसन में स्थिर हो कर बैठ सकें, उस आसन में बैठें।
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मेरूदण्ड व सिर को सीधा रखें।
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दायें हाथ के अंगूठे से दायें नासिका छिद्र को बन्द करें।
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बायें नासिका से रेचक (वायु बाहर छोड़ने) करने के बाद बायें नासिका से ही पूरक (वायु शरीर में भरना) करें।
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दायें हाथ की अनामिका अगुंली से बायें नासिका छिद्र को बन्द करें।
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थोड़ी देर कुम्भक (श्वास को अन्दर रोकना) करें।
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अंगूठा हटा, दायें नासिका से रेचक करें व इसी नासिका से पूरक करें।
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थोड़ी देर कुम्भक करने के बाद अनामिका को बाईं नासिका से हटा लें व रेचक करें।
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बाईं नासिका से पूरक करें व आगे इसी क्रम को दोहरायें।
लाभः-
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मानसिक रोगों को दूर करने में सहायक।
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एकाग्रता, आध्यात्मिक शक्ति व स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
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फेफड़ों को सशक्त कर, रोगों को दूर करने में सहायक।
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जठराग्नि प्रदीप्त होती है और पाचन शक्ति बढ़ती है।
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मन को शान्त कर मानसिक तनाव को कम करता है।
सावधानियां
- आरम्भ में 3-4 महीनें बिना कुम्भक अभ्यास करें।
- पूरक, कुम्भक व रेचक को करने का समय अनुपात 1:2:2 रखें जिसे अभ्यास के बाद 1:3:2 और 1:4:2 तक बढाया जा सकता है।
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हठपूर्वक श्वास रोकने का प्रयत्न न करें।
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अभ्यास के दौरान स्थिर हो कर बैठ जाये।
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धीरे-धीरे अभ्यास को बढ़ाये।
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धीमें-धीमें, लयबद्ध तरीके से बिना आवाज़ किये लम्बा, गहरा श्वास भरें व छोड़े।
विशेषः-
- उच्च रक्तचाप रोगी प्राणायाम, कुम्भक के बिना करें। 2
- योग विशेषज्ञ की देखरेख में ही प्राणायाम की शुरुआत करें।