अगर आप भारतीय है तो आपको आपकी मां ने या फिर आपकी दादी मां ने जंक फूड को लेकर जरूर डांटा होगा, साथ ही कहा होगा कि सेहतमंद और लंबी जिंदगी के लिए आयुर्वेदिक खाना खाएं, लेकिन आप पूछेंगे कि क्या है आयुर्वेदिक भोजन। कुछ लोग कहेंगे कि ये शाकाहार जैसा है, कुछ कहेंगे कि ये उबला हुआ खाना है या फिर बहुत से लोग कहेंगे कि सिर्फ फल और सब्जियाँ खाना ही आयुर्वेदिक भोजन है।
आयुर्वेद की मानें तो परिपूर्ण आयुर्वेदिक भोजन वही है जो आसानी से पच जाए, शरीर को पोषण दे, विषैले तत्व न बनाए और शरीर के तीन दोषों में असंतुलन पैदा न करे। आयुर्वेदिक भोजन आधुनिक पोषण प्रणालियों के जैसा नहीं है जो सार्वभौमिक रूप से लागू होने वाले दिशानिर्देशों पर चलता है। आयुर्वेद में पोषण के लिए व्यक्तिगत दृष्टिकोण होता है। आयुर्वेद में माना जाता है कि हर व्यक्ति का शरीर अलग तरीके से काम करता है और ऐसे में सबके लिए अलग आयुर्वेदिक भोजन होता है।
आयुर्वेद तीन ऊर्जाओं यानि दोषों: वात, पित्त और कफ के संतुलन पर जोर देता है। हर व्यक्ति में ये तीनों दोष अलग-अलग अनुपात में पाए जाते हैं, किसी में वात का प्रभाव ज्यादा होता है तो किसी में पित्त या कफ का प्रभाव ज्यादा होता है। दोषों के प्रभाव के हिसाब से ही किसी व्यक्ति की प्रकृति का पता चलता है। अपने दोषों को पहचानकर आप अपने लिए सेहतमंद आहार तय कर सकते हैं। अगर आपको अभी तक अपने दोष के बारे में नहीं पता है तो आप वीपीके टेस्ट ऑनलाइन कर सकते हैं।
एक बार जब आपको दोषों के बारे में पता चल जाएगा तो आप समझ सकेंगे कि कौन सा आहार आपकी सेहत के लिए ठीक हैं और कौन सा आहार आपके दोष को बढ़ाता है।
एक जैसे से बढ़ता है और विपरीत पर घटता है के सिद्धांत पर काम करता है दोष । उदाहरण के तौर पर अगर आप पित्त से प्रभावित हैं तो गर्म और मसालेदार भोजन खाने से आपका दोष बढ़ेगा और पानी की मात्रा बढ़ाने से वो संतुलित हो जाएगा।
इसके अलावा अलग-अलग आहार दोष पर अलग-अलग प्रभाव डालते हैं। उदाहरण के लिए गर्म और मसालेदार भोजन कफ की अधिकता वाले लोगों के लिए अच्छा है, लेकिन पित्त से प्रभावित लोगों के लिए बुरा। इसी तरह से तैलीय और गरिष्ठ आहार वात प्रकार के लोगों के लिए अच्छा रहता है लेकिन कफ से प्रभावित लोगों के लिए नुकसानदायक है।
हमेशा याद रखें कि अगर आप नियमित रूप से ऐसा भोजन करते हैं जो आपके शरीर के मुताबिक नहीं है तो इससे आपका पाचन तंत्र बिगड़ सकता है और ये आम बनाता है। अगर यह आम शरीर से नहीं निकला तो बढ़ता रहेगा और दोषों में असंतुलन लाएगा, जिससे बीमारियां होती हैं।
सुश्रुत संहिता में कहा गया है ‘जिसके दोष, अग्नि, धातु, मलाशय तंत्र संतुलित रहते हैं, उसका शरीर, मन और इंद्रियां अच्छी स्थिति में रहती हैं और ऐसे इंसान को ही एक स्वस्थ इंसान कहा जाता है’। इसलिए अगर आप अपनी सेहत को बेहतर बनाना चाहते हैं तो खुशी, मानसिक शांति को बढ़ाइए, अपने अंदर के दोष को पहचानिए और उसके मुताबिक ही आहार चुनिए।
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