सिरानुसारिभिर्दोषैर्विगुणैरुर्ध्वमागतैः। जायन्ते नेत्रभागेषु रोगाः परम दारुणाः।।
अर्थात्- भिन्न-भिन्न कारणों से दोष प्रकुपित होकर ऊर्ध्वगामी होते हैं और नेत्र की सिराओं में प्रवेश करके विविध अवयवों को दुष्ट करके नेत्र रोगों की उत्पति करते हैं।
ग्लूकोमा, काला मोतिया या नेत्राधिमंथ रोग गंभीर एवं निरंतर क्षति करते हुए धीरे-धीरे दृष्टि को समाप्त कर देते हैं। भारत में अंधत्व का यह दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
ग्लूकोमा में अंतर नेत्र पर दाब, प्रभावित आंखों की दाब सहने की क्षमता से अधिक हो जाता है (सामान्यतः यह (Iop 10 to 21 mm of Hg) और mean (16 2.5 mm of Hg) होता है) इसके परिणामस्वरूप नेत्र तंतु को क्षति पहुंचती है, जिससे धीरे-धीरे दृष्टि पूर्णतः चली जाती है।
सामान्यतः यह रोग 40 वर्ष से अधिक आयु के बीच पाया जाता है। फिर भी कुछ मामलों में यह नवजात शिशुओं, मधुमेह, आनुवांशिकता, उच्च रक्तचाप व हृदय रोग इस रोग के प्रमुख कारणों में है।
आंखों में स्थित कार्निया के पीछे आंखों को सही आकार और पोषण देने वाला तरल पदार्थ (Aqueous Humour) होता है। सीलियरी उत्तक इस तरल पदार्थ को लगातार बनाते रहते हैं। ग्लूकोमा में आंखों की बहाव नलिकाओं का मार्ग रुक जाता है, लेकिन सीलियरी उत्तक इसे लगातार बनाते ही जाते हैं जिससे आंखों में दृष्टि तंतु के ऊपर तरल का दबाव अचानक बढ़ जाता है। अगर यह दबाव लंबे समय तक बना रहता है तो इससे आंखों के तंतु भी नष्ट हो सकते हैं और दृष्टि पूरी तरह जा सकती है।
प्राथमिक खुला कोण ग्लूकोमा (POAG)
बंद कोण ग्लूकोमा (PACG)
कंजनाइटल ग्लूकोमा
स्टेरॉयड इंड्यूस्ड ग्लूकोमा
परिधीय दृष्टि की हानि (Visual Field Defect)
इंद्रधनुष रंग के गोले या रोशनी दिखाई देना।
दृष्टि मटमैली या धुंधली होना।
आंख में दर्द, लालिमा, पानी आना, सिरदर्द।
विटामिन ‘ए‘ युक्त खाद्य पदार्थ लें।
पालक, हरी सब्जि़यां, सौंफ आदि का सेवन करें।
त्रिफला, पुनर्नवा, आंवला का सेवन प्रतिदिन करें।
आंवले के रस में शहद मिलाकर लें।
लोध्र, त्रिफला, मुलेठी, नागरमोथा का आंखों की पलकों पर लेप करें।
आंवले का स्वरस नेत्र में डालना।
अडूसा, हरितकी, नीम की छाल, आंवला, नागरमोथा, बहेड़ा तथा परवल का पत्ता समभाग लेकर क्वाथ का पान करें।
आंखों से सम्बन्धित रोगों के उपचार हेतु जीवा आयुर्वेद के नेत्र चिकित्सक से परामर्श करें।
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