पंचकर्म शरीर और मन के अनोखे उपचार का अनुभव है, यह शरीर को शुद्ध करता है, शरीर की रक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है और संतुलन लाता है।
संस्कृत शब्द पंचकर्म का अर्थ है पाँच क्रियाएं या पाँच उपचार, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो खराब आहार और जीवनशैली से शरीर में बने आम को हटाने में सबसे असरदार है। जब आम शरीर में इकट्ठा हो जाता है, तो यह पूरे तंत्र में ऊर्जा और पोषण के रास्ते बंद करता है। आयुर्वेद मानता है कि विषैले तत्वों का बनना ही सभी बीमारियों का कारण है।
पंचकर्म, उपचार की एक अनोखी प्रक्रिया है और यह आसानी से किसी भी व्यक्ति के मुताबिक और उसके दोषों के असंतुलन को ठीक करने के लिए तैयार की जाती है। इस उपचार की प्रक्रिया में शरीर में मौजूद आम यानि विषैले तत्व जो धातुओं में मौजूद रहते हैं वह शरीर की वाहिकाओं से निकाले जाते हैं।
बहुत से लोगों को वसंत के मौसम में यानि फरवरी और अप्रैल में साल के बाकी दिनों के मुकाबले आम के बनने का अहसास होता है। यह इसलिए होता है क्योंकि शरीर में पहले से ही विषैले तत्व मौजूद हैं जिनके लक्षण इस समय में नजर आने लगते हैं। हममें से ज्यादातर लोग सही तरीके से सर्दियों में मौसम से जुड़ी दिनचर्या का पालन नहीं करते और इस वजह से शरीर में विषैले तत्व इकट्ठा हो जाते हैं और वो वाहिकाओं में रुकावट पैदा करते हैं।
ठीक उसी समय में जब मौसम ठंडा रहता है, आम शरीर की वाहिकाओं में जमा हुआ रहता है। इसके बावजूद हो सकता है कि इस समय में आपको आम से जुड़े लक्षणों का अहसास ही न हो, ऐसे में आपकी स्थिति वसंत के समय में ज्यादा परेशानियों से भरी हो सकती है।जब मौसम में गर्मी होती है तब जमा हुआ आम पिघलने लगता है और आपके शरीर की वाहिकाओं में बहने लगता है। इसके परिणामस्वरूप सभी वाहिकाएं विषैले तत्वों से भर जाती हैं, और आम होने के लक्षण नजर आने लगते हैं।
पंचकर्म की प्रक्रिया को लेने से पहले आपको आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास जाना होगा जो आपके शरीर की स्थिति और दोषों के बारे में पता लगाएगा। आम के बनने का कारण पता लगाने के बाद वह शरीर के धातुओं, हिकाओं और अंगों को पंचकर्म उपचार के लिए चुनेगा, उसके बाद उसी की जरूरत के मुताबिक शोधन प्रक्रिया तय करेगा।
एक आदर्श पंचकर्म शोध प्रक्रिया में तीन चरण होते हैं- पूर्वकर्म, प्रधानकर्म और पश्चातकर्म, इनके बारे में आपको बताते हैं
उपचार के पहले की ये तकनीक शरीर से आम को निकालने की प्रक्रिया के लिए तैयार करती है।स्नेहना पूर्वकर्म का पहला चरण है और इसमें शरीर को औषधियुक्त तेल से गीला किया जाता है ताकि आम कमजोर पड़े और धातुओंकी गहराई से उसे निकालकर पाचन तंत्र तक पहुँचाएं ताकि वहां से उसे निकालना आसान हो।बाहरी स्नेहना को अभ्यंग कहा जाता है जिसका मतलब है चिकित्सीय तेल से संपूर्ण शरीर की मालिश किया जाना। जब एक बार मालिश हो जाती है तो स्वेदना की प्रक्रिया शुरू की जाती है ताकि शरीर की वाहिकाओं से आम को आसानी से बाहर निकाला जा सके।
पूर्वकर्म के बाद आम पाचन तंत्र की ओर बढ़ जाता है। यहां मुख्य पंचकर्म उपचार जैसे वमन, नास्य, विरेचन और बस्ती किए जाते हैं इससे आम शरीर की सामान्य वाहिकाओं के जरिए बाहर निकल जाता है।
पश्चातकर्म पहले से निर्धारित एक प्रक्रिया है जिसको पंचकर्म के बाद अपनाना होता है। इस चरण का लक्ष्य होता है शरीर की रक्षा प्रणाली और पाचन तंत्र को दोबारा मजबूत बनाना। बहुत से लोगों को इसका अहसास नहीं होता कि उपचार के बाद की प्रक्रिया को नकारना पाचन तंत्र को खराब कर सकता है, जिससे आम का बनना लगातार जारी रह सकता है।
यहां तक कि जब आपका पंचकर्म उपचार खत्म भी हो जाए तो भी सलाह दी जाती है कि आप कुछ दिनों तक हल्का और पोषण से भरा हुआ भोजन करें जैसे खिचड़ी और मूंग दाल का सूप। साथ ही धीरे धीरे अपनी नियमित गतिविधियां और आहार पर लौटें ताकि आपका शरीर जो इस समय बहुत ही संवेदनशील अवस्था मे होता है वो उपचार के बाद दोबारा से कमजोर स्थिति में न आ जाए।
अगर आप आयुर्वेदिक शोधन उपचार लेना चाहते हैं, तो आपके लिए सलाह यही है कि अपने शरीर को उपयुक्त समय दें ताकि वो शोधन के लिए तैयार हो सके और आप ऐसा कर भी सकें। इस समय में आपको सलाह दी जाती है कि आप अपने काम और परिवार को अलग रखें और जितना हो सके उतना शारीरिक और मानसिक रूप से आराम करें।
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