तैयारी -
सर्वप्रथम ऋतु अनुकूल आसन बिछाँए जिस पर पूरा शरीर हाथ-पैर फैलाने के बाद ठीक से आ सके तथा शुद्ध वायु का आवागमन भी हो। आसन करने से पहले कुछ हल्के सूक्ष्म व्यायाम करके शरीर को गर्मा लें।
विधि -
सर्वप्रथम अपने आसन पर करवट लेते हुए धीरे से पीठ के बल शवासन मे लेट जाएँ। फिर दोनों पैर मिलाकर श्वास भरते हुए दोनों हाथों को सिर के पीछे लंबा खीचें। तथा बायां पैर मोडकर, श्वास बाहर करते हुए दोनों हाथों की ऊंगलियाँ आपस में फंसाएँ। घुटने को सीने पर तथा ठोड़ी को उठाते हुए घुटने से लगादबाएँ एँ। जब तक श्वास आसानी से बाहर रह सके तब तक रखें। जब श्वास अंदर लेने का मन करे तभी श्वास अंदर लेते हुए सामान्य कर दें तथा आसन में रूके रहें। इस अवस्था मे पेट बार-बार फूलेगा व सिकुड़ेगा तो पेट के सभी अंगों पर दबाव पड़ेगा। परिणाम स्वरूप पेट के सभी अंग लाभांवित होंगे। लगभग आधा मिनट से एक मिनट तक इसी अवस्था में रूकने के बाद श्वास भरते हुए सिर नीचे करें। फि र श्वास बाहर करते हुए पैर सीधा करें। सामान्य श्वास होने के बाद इसी प्रकार दाहिनी तरफ से भी करें तथा उसी प्रकार दोनों पैरों को मोडकर भी करें। इस तरह आसन को तीन-चार बार दोहराएँ।
लाभ -
यह आसन ‘यथानाम तथा गुण‘ की तर्ज पर काम करता है। इस आसन को करते-करते पेट से अपान वायु भी बाहर होती है। साथ ही यह गुर्दे, लिवर, मूत्राशय, पित्त की थैली, आंतें, कमरदर्द, स्लिप डिस्क, कूल्हों का दर्द, ह्वदय रोग व फेफड़ों को सशक्त करता है तथा स्त्री-रोग जैसे श्वेत प्रदर, मासिक धर्म की अनियमितता इत्यादि में लाभकारी है, वहीं बच्चों का कद बढ़ाने मे भी सहायक है।
सावधानियाँ -
जिन्हें सर्वाइकल, माइग्रेन, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कमर दर्द, हर्निया व महिलाओं को गर्भाशय की समस्या हो, वे सिर उठाकर ठोड़ी घुटनों से न लगाएँ, सिर जमीन पर ही रखें। केवल घुटना ही सीने पर दबाएँ तथा बढ़े हुए हृदय रोग तथा उच्च रक्तचाप के रोगी दोनों पैर एक साथ दबाने वाला आसन भी न करें। ऐसा करने पर हृदय व मस्तिष्क की तरफ वायु का दबाव बढ़ता है।