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फ्लू से बचना उसके इलाज से बेहतर है

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संक्रामक फ्लू का फैलना और उसको लेकर चिंताएं पूरे विश्व में हैं। सरकारें और मेडिकल संस्थान भी स्वाइन फ्लू और डेंगू जैसी बीमारियों की तरह ही फ्लू से भी लड़ रहे हैं, इस संक्रमण को भी वैश्विक रूप से महामारी की तरह से वर्गीकृत किया गया है। बड़े मीडिया कैंपेन भी सभी जगह चलाए गए हैं ताकि लोगों में इस बीमारी के प्रति जागरुकता आए, लेकिन फिर भी इसका फैलना जारी है और यह लाखों लोगों के लिए एक खतरा बना हुआ है। आखिर ऐसा क्यों है?

हम इन समस्याओं के लिए सही उपाय ढूंढने में अभी तक नाकाम रहे हैं क्योंकि हमने इसके मूल कारणों पर ध्यान नहीं दिया है, जो है शरीर की कमजोर रक्षा प्रणाली और ओज । 5000 साल पुराने प्राकृतिक रूप से किए जाने वाले इलाज के विज्ञान आयुर्वेद के पास सभी बीमारियों और उससे होने वाली परेशानियों से लड़ने का ज्ञान मौजूद है।

फ्लू पर आयुर्वेदिक नजरिया:

आयुर्वेद के मुताबिक,फ्लू का कारण है शरीर की रक्षा प्रणाली का कमजोर होना। उपचार के इस प्राचीन विज्ञान में शरीर की रक्षा प्रणाली का सिद्धांत बीज भूमि नियम पर आधारित है। जब भूमि यानि शरीर उपजाऊ होती है मतलब जब कमजोर पाचन की वजह से विषैले तत्व या आम इकट्ठा हो जाता है, सारे बीज यानी वायरस आसानी से बढ़ते हैं। इसके विपरीत जब भूमि अनुपजाऊ होती है तो कम मात्रा में बीज पनपते हैं। इसका मतलब है कि जब मानव शरीर में ‘आम’ होता है तो यह अलग-अलग वायरसों के पनपने के लिए अच्छी जगह बन जाता है।

वहीं दूसरी तरफ सेहतमंद पाचन तंत्र से बनता है ओज, यह शरीर को संक्रमणों से बचाता है। शारीरिक स्तर पर शरीर की कमजोर रक्षा प्रणाली और दिमागी स्तर पर मानसिक मजबूती की कमी दरअसल कमजोर ओज ही है। आयुर्वेद कहता है कि आप फ्लू को फैलने से रोक सकते हैं वो भी ओज को मजबूत करके और शरीर की रक्षा प्रणाली को ताकतवर बनाकर।

फ्लू से बचने के सामान्य उपाय:

यहां हम आपको कुछ खास उपाय बताते हैं जिससे आप खुद को फ्लू के अलग-अलग प्रकारों से बचा सकते हैं

  • ये सुनिश्चित करें कि हर रात आप कम से कम 7-8 घंटे अच्छी नींद लें

  • पंचकर्म उपचार लें- यह विशेष आयुर्वेदिक मालिश की तकनीक है,यह शरीर की अंदरूनी साफ सफाई करके जीवन शक्ति को बढ़ाती है।

  • हर दिन 8-10 गिलास पानी पिएं ताकि जमा हो चुका आम शरीर से निकल सके।

  • सेहतमंद और संतुलित आहार का सेवन करें ताकि आपका शरीर मजबूत बने, उसे पोषण मिले और वो संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार हो सके। अनाज, हरी सब्जियाँ और विटामिन से भरे हुए फलों का सेवन करें।

  • नियमित व्यायाम से अपने शरीर की रक्षा प्रणाली को मजबूती दें। यह आपके शरीर में रक्त संचार को बढ़ाता है और शरीर की अलग-अलग वाहिकाओं की रुकावटें दूर करने में मदद करता है।

  • अगर आपको खांसी और बुखार है तो अपनी डॉक्टर से संपर्क करें और उनके बताए गए दिशा निर्देशों का पालन करें। ये भी सुनिश्चित करें कि उनकी बताई गई दवाइयों का सेवन सही समय और सही मात्रा में हो रहा हो।

फ्लू का सामान्य प्रकार:

मलेरिया:

मलेरिया एक ऐसी संक्रमित बीमारी है जो परजीवियों की वजह से होती है। प्लास्मोडियम लाल रक्त कणिकाओं को संक्रमित करता है। संक्रमित एनाफिलीज़ मच्छर के काटने पर यह परजीवी किसी व्यक्ति के खून में प्रवेश कर जाता है और फिर जल्दी जल्दी अपनी संख्या बढ़ाने लगता है, इसकी वजह से लाल रक्त कणिकाएं खत्म होने लगती हैं। मलेरिया का मुख्य लक्षण है बुखार, कंपकंपी, सिरदर्द, थकान और मितली आना।

आयुर्वेद में मलेरिया को विषम ज्वर या भुताभिशंग कहा जाता है, इसका मतलब है ऐसा वायरल फ्लू जो बाहरी वायरल कारकों जैसे मच्छर की वजह से होता है। शरीर के तीनों दोषों के बिगड़ने की वजह को ही मलेरिया होने का कारण माना जाता है, इसमें पित्त को प्रमुख दोष माना गया है।

डेंगू:

डेंगू बुखार दुनियाभर के उष्णकटिबंधीय और उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए एक बहुत सामान्य बीमारी है, यह ऐसे मच्छरों से फैलता है जिनमें डेंगू बुखार के वायरस होते हैं। इंसान को काटने पर मच्छर में मौजूद वायरस मरीज के शरीर में प्रवेश कर जाता है और फिर वायरस खुद की संख्या बढ़ाकर पूरे शरीर में फैल जाता है जिससे बुखार आ जाता है। डेंगू बुखार के मुख्य लक्षण हैं कंपकंपी, सिरदर्द, खुजली, मितली आना और भूख कम लगना।

आयुर्वेद के मुताबिक डेंगू के मामले में वायरस संक्रमण से पित्त असंतुलित हो जाता है जिससे खून में प्लेटलेट्स की मात्रा कम होने लगती है। अगर खून में प्लेटलेट्स की संख्या पर लगातार नजर न रखी गई हो और वह कम हो जाए तो अक्सर खतरनाक स्थिति बन जाती है।

स्वाइन फ्लू:

स्वाइन फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है, इसका कारण वह फ्लू वायरस है, जो आमतौर पर सुअरों के श्वसन तंत्र को संक्रमित करता है। इन वायरसों के अंदर क्षमता होती है कि यह खुद को बदल सकें, इसलिए यह आसानी से इंसानों में फैल जाते हैं। इंसानों में इसके कुछ खास लक्षण नजर आते हैं जैसे खांसी, थकान, मितली, उल्टियाँ, बुखार, डायरिया और शरीर में दर्द।

आयुर्वेदिक उपचार में स्वाइन फ्लू को वात कफज ज्वर कहा जाता है, यह बीमारी वात और कफ के बिगड़ने पर हो जाती है। यह श्वसन तंत्र पर प्रभाव डालती है, हवा की नलियों में रुकावट पैदा करती है और इसके कुछ खास लक्षण नजर आते हैं जैसे खांसी, मितली आना और शरीर में दर्द वगैरह।

फ्लू का आयुर्वेदिक उपचार:

किसी भी तरह के फ्लू के आयुर्वेदिक उपचार में शरीर के रक्षा तंत्र को मजबूत बनाकर वायरस को नियंत्रित किया जाता है ताकि परेशानी से बचा जा सके। इससे शरीर से विषैले तत्वों को बाहर करने में मदद मिलती है। यह घरेलू उपचार फ्लू के इलाज में काफी असरदार होते हैं।

  • तुलसी की पत्तियों को फ्लू से बचाव में बहुत फायदेमंद माना जाता है। 11 ग्राम तुलसी की पत्तियों के रस को तीन ग्राम काली मिर्च पाउडर के साथ मिलाकर बुखार होने पर पिएं। इससे रोग की गंभीरता का पता चलेगा।

  • अगर आपको मच्छरों ने काटा है और आपको लगता है कि आपको फ्लू हो गया है तो सबसे अच्छा उपाय ये होगा कि आप मच्छर के काटने के कुछ घंटे बाद तुलसी के पत्तों का ताज़ा रस पिएं।

  • जड़ी बूटी चिरैता वायरल बुखार के इलाज में बहुत कारगर है। इसकी मदद से तापमान कम करने में मदद करती है। जड़ी बूटियों का मिश्रण जिसमें 15 ग्राम चिरैता को 250 मिली. गर्म पानी में मिलाएं साथ ही इसमें लौंग और दालचीनी भी मिलाएं। इस मिश्रण का 15-30 मिली. की मात्रा में सेवन करें।

  • गिलोय की पत्तियों का काढ़ा दिन में दो बार पिएं। काढ़ा बनाने के लिए गिलोय की डंठल को 2 कप पानी में तब तक उबालें जब तक वह एक कप ना हो जाए। फिर इसको छानकर पिएँ

  • नीम के अंदर हवा को साफ करने का गुण होता है यह फ्लू समेत वायु से होने वाली बीमारियों में लाभ पहुंचाता है। 3-5 ताज़ी पत्तियाँ रोज़ चबाएं इससे शरीर में खून साफ होता है।

  • एक फीट लंबी गिलोय की डंडी और तुलसी की सात पत्तियाँ लें, इसके मिश्रण का रस निकाल लें। इस रस को उबालें और पिएँ। यह हर्बल रस आपके शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करता है।

सबसे बेहतर जो हम एक नागरिक होने की वजह से कर सकते हैं वो है खुद को आसपास की घटनाओं के प्रति जागरुक करना और समय रहते ऐसे कदम उठाना जिससे फ्लू फैले नहीं।

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