अर्थात्- नेत्र रोग में सैंधवादि लेप-सेन्धानमक, दारुहल्दी, गेरु, हर्रे तथा रसाञ्जन समभाग इन सबके कल्को का आँख के बाहर लेप करने से सभी प्रकार के नेत्र रोग दूर होते है।
रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा एक अनुवांशिक आँखों की बीमारी है एवं यह समान रुप से पुरुष और स्त्री दोनों में पाई जाती है। यह दोनो आँखों को समान रुप से से प्रभावित करती है। यह समान्यतः 1000 में से 5 लोगों में पाई जाती है। इसको नजर अंदाज करने पर आँखों की रोशनी जा सकती है।
कारण:
रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा में गुणसूत्रों में उत्पन्न दोषों के कारण रेटिना के फोटोरिसेप्टर Rod cells and Cone Cells विकृत होने लगते है। जिससे शुरुआत में कम रोशनी या रात में दिखाई नही देता एवं बीमारी बढ़ने पर दिन में या रोशनी मे भी देखने में परेशानी होने लगती है तथा धीरे-धीरे आँखों की रोशनी पूरी तरह चली जाती है। कुछ मरीजों में मोतियाबिंद एवं ग्लूकोमा भी उत्पन्न हो जाता है।
आयुर्वेद के द्वारा रोटिनाइटिस पिगमेंटोसा में Rod cells और Cone Cells की विकृति को रोक कर बीमारी को आगे बढ़ने से रोका जाता है तथा कुछ दृष्टि को ठीक की जाती है। अतः इस व्याधी में आयुर्वेद चिकित्सा एवं पंचकर्म महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
लक्षण:
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रात के वक्त धुंधला या दिखाई देना बंद हो जाता है। बाद में धीरे-धीरे दिन में भी समस्या होने लगती है।
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कम रोशनी में देखने में तकलीफ होती है।
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रंग पहचानने में दिक्कत होती है।
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सीढि़या उतरने-चढ़ने में परेशानी होती है।
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ट्यूबलर दृष्टि उत्पन्न होती है।
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टपेनंस थ्पमसक कम होता है।
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तमोनुकूलन (Dark Adaptation) में समस्या होती है।
क्या न करें:
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दूषित और बासी भोजन न करें।
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रात्रि जागरण न करें।
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कम्प्यूटर या मोबाइल का प्रयोग कम करें।
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उष्ण, अम्ल, मिर्च-मसालेदार भोजन का प्रयोग न करें।
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आम, इमली, अचार और चाइनीज फूड इस रोग में वर्जित है।
क्या लें:
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काली मिर्च, मक्खन व मिश्री मिलाकर समभाग में लें।
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आंवले का जूस व मिश्री साथ में लें।
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अश्वगंधा, आंवला और मुलेठी लें।
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चौलाई के साग का सेवन करें।
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सहजन के पत्ते, फली और मेथी भी लाभदायक है।
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आंवला व गोघृत का सेवन करें।
नोट:
आंखों से सम्बन्धित रोगों के उपचार हेतु जीवा आयुर्वेद के नेत्र चिकित्सक से परामर्श करें।