मौसम का त्रिदोष पर प्राकृतिक प्रभाव पड़ता है। चरक संहिता के मुताबिक किसी व्यक्ति की मजबूती तभी बढ़ती है जब वह मौसम के हिसाब से आहार और दिनचर्या को अपनाता है।
अपनी सेहत के स्तर को अच्छा बनाए रखने के लिए मौसम के गुण और त्रिदोष पर उनके असर के बारे में जानना ज़रूरी है। दोष उन मौसमों में इकट्ठा होता है जो उनके गुणों और तत्वों को साझा करते हैं। जब दोष एक निश्चित सीमा से ज्यादा हो जाता है तो वो बढ़ा हुआ माना जाता है और उससे जुड़े लक्षण नजर आने लगते हैं। दोषों से विपरीत मौसम उसको शांत करता है।
उदाहरण के लिए, वात तब बढ़ जाता है जब वातावरण सूखा, हवाओं वाला और ठंडा होता है जैसे सर्दियों में। सर्दियों में जब गीलापन और ठंड होती है तो कफ इकट्ठा हो जाता है। जब गर्मी होती है जब पित्त बढ़ता है। बढ़े हुए दोष को आहार और ऐसी जीवनशैली जो उस दोष के विपरीत हो उसे अपनाकर कम किया जाता है। इसलिए जब गर्मी होती है और पित्त बढ़ा हुआ होता है, ठंडक पहुंचाने वाले भोजन और पेय ऐसे में फायदेमंद रहते हैं। और जब ठंड होती है और वात या कफ बढ़े हुए होते हैं, गर्मी देने वाला भोजन ज्यादा सही साबित होता है। सर्दियों में मौसमी दिनचर्या जो प्राकृतिक रूप से बढ़े हुए दोष को कम करती है वो नीचे बताई गई है।
सर्दियों के मौसम में ठंडे और नम वातावरण की वजह से शरीर में प्राकृतिक रूप से कफ जमा हो जाता है। ठंडे मौसम में वात भी बढ़ सकता है। गर्म स्नान, सौना यानि स्वेदना, सनबाथ और गर्म घरों में रहना फायदेमंद होता है। भारी, गर्म कपड़े पहनने चाहिए। सर्दियों में अगर कफ की अधिकता हो जाए तो सूखी मालिश करनी चाहिए। अगर वात की अधिकता हो तो गर्म तेल से मालिश करनी चाहिए।
ठंडा या जमा हुआ भोजन और पेय से बचना चाहिए, हल्के आहार के सेवन की सलाह भी दी जाती है। गर्म पेय और आहार जिसमें गर्माहट वाला प्रभाव हो उनको प्राथमिकता दें। सर्दियों में पाचन की शक्ति यानि जठराग्नी काफी मजबूत होती है। बाहरी वातावरण ठंडा होता है, ऐसे में शरीर गर्मी को अंदर ही समेटकर रखता है। इसलिए पाचन की अंदरूनी अग्नि ज्यादा ताकतवर हो जाती है। यह अग्नि तेल, वसा, दूध से बनी चीजें जैसे दही, पनीर आसानी से पचा लेती है। गरिष्ठ भोजन इस दौरान हमारे आहार की बड़ा हिस्सा होता है और मजबूत जठराग्नि के लिए इसे पचाना आसान होता है।
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