मौसम कोई भी हो, चाहें गर्मी, सर्दी या बरसात, हमारी गलत दिनचर्या, गलत खान-पान, रहन-सहन, गलत श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया, कमज़ोर पाचन शक्ति इत्यादि ऐसे कई कारण हैं जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमज़ोर कर बीमारियों को आमंत्रित करते रहते हैं।
शरीर रूपी गाड़ी ठीक से चलती रहे और हम जि़ंदगी के सफर का आनन्द लेते रहें इसके लिए अति आवश्यक है कि हमारी श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया जन्मपर्यन्त ठीक तरह से चलती रहे। श्वास प्रक्रिया को ठीक चलाने के लिए श्वसन प्रणाली, जिसमें नाक, श्वासनाल, श्वास नलिकाएं और फेफड़ों का महत्वपूर्व योगदान रहता है, का स्वस्थ होना अति आवश्यक है।
श्वसन प्रणाली को स्वस्थ रखने के लिए, जिससे कि खॉसी, जुक़ाम, अस्थमा जैसे रोगों को रोका जा सके, गोमुखासन, उष्ट्रासन, पवनमुक्तासन, शशांकासन, ताडासन, शलमासन, सूर्यनमस्कार, कपालभाती और अनुलोम-विलोम प्राणयाम का अभ्यास भी लाभकारी रहता है।
आसनों की श्रृंखला में हम आज जिस आसन के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं उसका नाम है- शलभासन आसन करते समय शरीर की आकृति को शलभासन के नाम से जाना जाता है।
समतल, स्वच्छ जम़ीन पर आसन बिछा पेट के बल लेट जाएं।
दायें हाथ को दाईं व बायें हाथ को बाईं जंघा के नीचे रखें।
चेहरे को थोड़ा ऊपर उठा ठुड्डी को ज़मीन पर लगा लें।
श्वास भरें (अन्तः कुम्मक) व तत्त्पश्चात दाईं टांग को सीधा रखते हुए दायें पांव को अपनी क्षमतानुसार ऊपर उठाकर रखें।
श्वास छोड़ते हुए पांव को नीचे वापिस ले आएं।
इसी क्रम से बायें पांव को दोहराएं।
अर्ध शलभासन का अच्छा अभ्यास होने के बाद दोनों पैरों को इकट्ठा उठा पूर्ण शलभासन का अभ्यास करें।
रीढ़ को लचीला व पुष्ठ करता है।
फेफड़ों को स्वस्थ बना श्वास रोगों को दूर करने में सहायक है।
पाचन क्रिया को ठीक करता है।
कन्धों को मज़बूत बनाता है।
पेट, कमर की चर्बी व वजन कम करने में मददगार।
आसन करते समय ठुड्डी ज़मीन पर रहे।
अंतः कुम्भक लगाने के बाद पैर उठाएं।
पांव उठाते समय जल्दबाजी न करें।
हृदय, हर्निया, आँतों के रोगी ये आसन न करें।
गर्भवती महिलाएं भी इसे न करें।
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