इंसान का शरीर एक गजब की जटिल प्रणाली है जिसमें हानिकारक चीजों को संतुलित या खत्म करने के कई उपाय मौजूद हैं। इन पदार्थों को शरीर से दूर करने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए, शरीर ऐसी कई जरूरतों से लैस है जो स्वाभाविक रूप से दिखाई देती हैं। दो प्रकार की प्राकृतिक जरूरतें हैं-
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में ऐसी 13 प्राकृतिक जरूरतें होती हैं जिन्हें रोका नहीं जा सकता है। ये शरीर की ऐसी स्वभाविक जरूरतें (मल और मूत्र का त्याग) हैं जिन्हें समय पर हर किसी को पूरा करना चाहिए ताकि शरीर में नियंत्रण बना रहे और जब इनमें से किसी भी जरूरत को पूरा नहीं किया जाता है तब शरीर का नियंत्रण बिगड़ जाता है। 13 प्राकृतिक जरूरतें जिन्हें रोका नहीं जा सकता:
मूत्र त्यागना
मल त्यागना
वीर्य को त्यागना
पेट की गैस को बाहर निकालना
उल्टी करना
छींकना
डकार मारना
उबासी लेना
भूख मिटाना
प्यास बुझाना
आंसू बहाना
सोना
थकने के कारण जोर-जोर से सांसें लेना
हमारी आज की आधुनिक जीवनशैली में, हम अपने शरीर की कई प्राकृतिक जरूरतों को रोक या दबा जाते हैं, मीटिंग में जब बैठे होते हैं तो जबरदस्ती अपनी छींक रोक देते हैं, काम में व्यस्त होने के कारण खाना नहीं खाते, टीवी पर पसंदीदा शो देखते समय पेशाब को रोके रखते हैं या गैस पास करने से बचते हैं या लोगों के बीच में उबासी लेना ठीक नहीं समझते। शरीर की इन प्राकृतिक जरूरतों को रोकना या दबाना बीमारी का कारण बन सकता है। नीचे दिए गए विवरण में शरीर की हर प्राकृतिक जरूरत को दबाने के कारण होने वाले विकारों के बारे में बताया गया है।
अगर कोई व्यक्ति मल को रोककर रखता है तो ये पेट में दर्द, सिरदर्द, मल त्याग में समस्या, पेट की बीमारियों, गैस बनने और ऐंठन का कारण बनता है।
अगर आपका शरीर वीर्य का त्याग करना चाहता है तो इसे रोकना नहीं चाहिए जबकि आयुर्वेद वीर्य के संरक्षण को बढ़ावा देता है, क्योंकि ये शुक्र धातु का एक हिस्सा होता है, इसे जबरदस्ती रोकने की सलाह नहीं दी जाती है। वीर्य को रोके रखने से लिंग और अंडकोश में दर्द, बेचैनी, दिल में दर्द और पेशाब को रोके रखने की समस्या होती है।
अगर कोई पेट में बनी गैस को रोकता है तो इसके कारण मल में अवरोध, मूत्र और गैस, पेट बढ़ने, पेट के दर्द और वात के बढ़ने से होने वाली पेट की समस्याएं होती हैं
उल्टी को रोकने से जो बीमारियां पैदा होती हैं उनमें खुजली, पित्त, जी खट्टा होना, चेहरे पर काले धब्बे आना, सूजन, खून की कमी, बुखार, त्वचा के रोग, उबकाई और चर्म रोग आते हैं।
अगर कोई छींक को रोककर रखता है तो इससे गर्दन में अकड़न, सिरदर्द, चेहरे का लकवा, और लिंग की कमजोरी की समस्या हो जाती है। डकार या डकार में अवरोध पैदा करने से हिचकी, सांस लेने में दिक्कत, भोजन में अरूचि, कंपकपी, दिल और फेफड़ों के कार्यों में बाधा पैदा होती है।
उबासी को रोकने से ऐंठन, मरोड़, सूजन, कंपकपी, और शरीर में थरथराहट पैदा होती है। ये सभी बीमारियां शरीर में पित्त के बढ़ जाने से होती हैं जबकि उबासी लेते समय शरीर का अनचाहा वात बाहर निकल जाता है और अगर इसे जबरदस्ती रोका जाए तो ये वात से जुड़ी कई बीमारियों को का कारण बनता है।
भूख को दबाने से किसी व्यक्ति को उत्सुकता, कमजोरी, शारीरिक रंग में परिवर्तन, बेचैनी और चक्कर आने की समस्या होती है। प्यास को रोकने से गले और मुंह में सूखापन, थकावट,कमजोरी और दिल में दर्द होने लगता है।
आँसूओं को रोके रखने से व्यक्ति को आंखो से जुड़ी, दिल से जुड़ी बीमारियों, चक्कर आने की समस्या होती है। आंसू रोकने से भावनाओं की समस्या, मानसिक चिंताएं, तनाव और झुंझलाहट की समस्या हो सकती है।
नींद को रोकने से उबासी, बेचैनी, सुस्ती, कब्ज,शरीर में दर्द, सिरदर्द और भारीपन होने लगता है।
पेशाब को रोके रखने से पेशाब की थैली और लिंग में दर्द, पेशाब में जलन, , सिरदर्द, शरीर में विचलन और पेट के निचले हिस्से में विकृति की समस्या होती है।
इस जरूरत को दबाना दिल से जुड़ी बीमारियों, सांस लेने संबंधी बीमारी, बेहोशी का कारण बन सकता है। आयुर्वेद के अनुसार, इन सभी बीमारियों का पहला इलाज है कि इनके कारणों को दूर किया जाए। इसलिए शरीर की प्राकृतिक जरूरतों को रोकने से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए जरूरी है कि शरीर की किसी भी प्राकृतिक जरूरत को ना रोका या दबाया जाए।
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