गलत दिनचर्या के कारण शरीर का अस्वस्थ रहना, कार्य-क्षमता की कमी इत्यादि स्वाभाविक ही है। परिणामस्वरूप कई छोटे-छोटे रोग इन्सान को घेर लेते हैं और यही छोटे रोग एक दिन भयंकर बीमारी का रूप धारण कर लेते हैं। ऐसा ही एक रोग है टिनिट्स। कानों में अजीब किस्म की आवाजें सुनाई देने से जुड़ा ये रोग तनाव, गर्दन की अकड़न, दिमाग की तरफ कम रक्तसंचार या कानों की ठीक देखभाल न करने इत्यादि कारणों से होता है।
गोमुखासन, उष्ट्रासन, अधोमुखश्वानासन, भुजंगासन, हलासन, मत्स्यासन का अभ्यास टिनिट्स से मुक्ति पाने के लिये किया जा सकता है। इनके अतिरिक्त आज हम जिस आसन की चर्चा कर रहे हैं उसका नाम है ‘‘विपरीतकरणी‘‘ । आसनों के अतिरिक्त यौगिक क्रियाएं, मालिश व कानों की नियमित देखभाल भी रोग निवारण में काफी लाभकारी हैं।
विधि:
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स्वच्छ वातावरण में आसन बिछा पीठ के बल लेट जायें।
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श्वास भरते, दोनों टाँगों को सीधा ऊपर उठाते हुये 90 डिग्री तक (अर्धहलासन की स्थिति) लायें।
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श्वास छोड़ते हुए कमर को ऊपर उठायें व टाँगों को सीधा रखते हुए पैरों को सिर की तरफ जाने दें।
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श्वास भरते हुये हाथों को कमर पर रखें व टाँगों को सीधा रखते हुये ऊपर की तरफ सीधा उठायें।
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ध्यान पैरों के पंजों पर टिका लें।
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श्वास सामान्य रखते हुये यथाशक्ति 1 से 3 मिनट तक रूकें।
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श्वास भरें व श्वास छोड़ते हुये टांगें सिर की तरफ वापिस ले आयें।
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संतुलन बनाते हुये पहले एक हाथ व तत्पश्चात् दूसरा हाथ वापिस ज़मीन पर टिका दें।
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श्वास भरते हुये पीठ व कमर को धीरे-धीरे ज़मीन पर टिका अर्ध हलासन की स्थिति में लौट आयें।
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श्वास छोड़ते हुये टांगा को वापिस ज़मीन पर टिका 2-3 मिनट श्वासन में लेटे रहें।
लाभ:
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कण्ठ को प्रभावित कर स्वर को मधुर व सुरीला करता है।
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जठराग्नि को तीव्र कर पाचन शक्ति बढ़ाता है।
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गले के रोग दूर करने में सहायक।
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रक्त संचार को ठीक रखता है।
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यौन ग्रन्थियों के दोष दूर होते हैं।
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तनाव व अनिद्रा पर नियन्त्रण होता है, अवसाद दूर करता है।
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शरीर सुन्दर, सशक्त, सुदृढ़ व आकर्षक बनता है।
विशेष:
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आसन के दौरान टांगों को मुड़ने मत दें।
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आसन के दौरान गर्दन को इधर-उधर न मोडे।
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आसन के अन्त में श्वासन अवश्य करें।
सावधानियाँ:
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हृदय व उच्च रक्तचाप रोगी इसे न करें।
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किसी भी आसन को करने से पूर्व अपने डॉक्टर से परामर्श करने के पश्चात् योग्य शिक्षक की देखरेख में ही अभ्यास करें।