मानव शरीर की रचना भी एक मशीन की तरह है। असंतुलित भोजन, ठंडी चीज़ों का अधिक सेवन, खड़े होकर या फिर चलते-चलते भोजन करना, जल्दी-जल्दी बिना चबाये भोजन निगलना, चिन्ता, तनाव, समय पर न सोना, न जागना कुछ ऐसे कारण हैं जिस वजह से मानव रूपी मशीन की पाचन शक्ति कमजोर होने लगती है, शरीर दुर्बल होने लगता है और भोजन ठीक से न पचने के कारण भोजन का अपरिपक्व रस हड्डियों में जा दर्द उत्पन्न करने लगता है। कब्ज़, मोटापा, यूरिक एसिड की अधिकता के कारण भी जोड़ों में दर्द होने लगता है जिस कारण जीवन दूभर हो जाता है। ये दर्द कम या अधिक हो सकता है। सर्दी में या अधिक नमी वाले मौसम में इस का प्रकोप अधिक होता है।
जोड़ों के दर्द (अर्थराईटिस) से आजकल न केवल बड़े-बूढ़े लोग परेशान हैं अपितु आधुनिक लाईफ स्टाईल की वजह से कम उम्र के लोग भी इस बीमारी की गिरफ्त में फँसे चले जा रहे हैं।
योगाभ्यास और प्राणायाम इस विकार को दूर करने में काफी सहायक सिद्ध होते हैं। योगाभ्यास से रक्त संचार ठीक होने लगता है और रक्त विशेष अंगों तक पहुँचकर विजातीय द्रव दूर करता है व अंग ठीक से काम करने लगते हैं। इस विकार से बचने के लिये न केवल पीड़ित व्यक्ति को अपितु स्वस्थ व्यक्ति को भी यौगिक क्रियायें/सूक्ष्य व्यायाम करते रहना चाहिये। कई बार सूक्ष्म व्यायाम या आसन करने से जोड़ों और माँसपेशियों में हल्का दर्द महसूस होने लगता है। इससे घबराने की आवश्यकता नहीं। अपनी शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार धीरे-धीरे अभ्यास करते रहें। व्यायाम बिल्कुल न करने से अंग और अधिक शिथिल हो जाते हैं और बीमारी बढ़ती चली जाती है।
सूक्ष्म व्यायाम के अतिरिक्त ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, त्रिकोणासन, उत्तानासन, पवनमुक्तासन, सेतुबन्धासन, भुजंगासन, मकरासन, धनुरासन, चलित सर्पासन भी किसी योग्य योग शिक्षक की देख-रेख में किये जा सकते हैं।
याद रखिये-
नियमित योगाभ्यास व प्राणायाम से आत्म-विश्वास की वृद्धि कर इस रोग पर विजय प्राप्त की जा सकती है और इन्सान निरोग व स्वस्थ जीवन का आनन्द उठा सकता है।